अध्याय 4 : पोस्ट-आधारित रोस्टर प्रणाली
(Post-Based
Reservation Roster System in Indian Railways)
4.1 पोस्ट-आधारित रोस्टर का अर्थ
पोस्ट-आधारित रोस्टर
प्रणाली वह व्यवस्था है जिसमें आरक्षण का निर्धारण रिक्तियों के आधार पर न होकर स्वीकृत पदों (Sanctioned Posts) के आधार पर किया जाता है। इस प्रणाली में
प्रत्येक पद को रोस्टर का एक निश्चित बिंदु प्रदान किया जाता है, जो पहले से यह निर्धारित करता है कि वह पद
किस श्रेणी के लिए आरक्षित होगा।
यह प्रणाली आरक्षण नीति को अस्थायी न बनाकर स्थायी और संरचित स्वरूप प्रदान करती है।
4.2 पोस्ट-आधारित रोस्टर अपनाने की आवश्यकता
वैकेंसी-आधारित रोस्टर
प्रणाली से उत्पन्न असंतुलन, विवाद और
न्यायिक हस्तक्षेप के कारण पोस्ट-आधारित रोस्टर को अपनाना आवश्यक हो गया। इस नई
प्रणाली का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि आरक्षण प्रतिशत कुल पदों के अनुपात
में ही सीमित रहे और किसी भी स्थिति में असंवैधानिक स्थिति उत्पन्न न हो।
भारतीय रेलवे जैसे बड़े संगठन में यह प्रणाली प्रशासनिक स्थिरता के लिए अत्यंत आवश्यक सिद्ध हुई।
4.3 स्वीकृत पद और रोस्टर का संबंध
पोस्ट-आधारित रोस्टर
प्रणाली में सबसे महत्वपूर्ण तत्व
स्वीकृत पदों की संख्या
है।
किसी भी संवर्ग में जितने पद स्वीकृत होते हैं, उतने ही रोस्टर बिंदु बनाए जाते हैं।
प्रत्येक रोस्टर बिंदु
एक निश्चित श्रेणी से जुड़ा होता है और भविष्य में उसी श्रेणी से उस पद पर
नियुक्ति की जाती है।
4.4 रोस्टर बिंदु की अवधारणा
रोस्टर बिंदु वह क्रमांक
है जो यह दर्शाता है कि किसी विशेष पद पर किस श्रेणी के कर्मचारी की नियुक्ति की
जाएगी। यह बिंदु स्थायी होता है और समय के साथ परिवर्तित नहीं किया जाता।
जब भी किसी पद पर रिक्ति
उत्पन्न होती है, तो उसी रोस्टर
बिंदु के अनुसार नियुक्ति की जाती है।
4.5 रोस्टर और प्रतिस्थापन का सिद्धांत
पोस्ट-आधारित रोस्टर
प्रणाली का मूल सिद्धांत
“जैसा गया, वैसा आया” पर आधारित होता है।
अर्थात यदि किसी रोस्टर बिंदु पर नियुक्त कर्मचारी सेवानिवृत्त होता है या पद
छोड़ता है, तो उसी श्रेणी
से उसका प्रतिस्थापन किया जाएगा।
इससे रोस्टर में
निरंतरता बनी रहती है और संतुलन बिगड़ता नहीं है।
4.6 रोस्टर का संवर्ग-वार निर्धारण
रेलवे में पोस्ट-आधारित
रोस्टर संवर्ग-वार (Cadre-wise) तैयार किया जाता है। प्रत्येक संवर्ग को एक
स्वतंत्र इकाई माना जाता है और उसके लिए अलग-अलग रोस्टर बनाए जाते हैं।
इस व्यवस्था से यह
सुनिश्चित होता है कि विभिन्न संवर्गों में आरक्षण का अनुपात संवैधानिक सीमा के
भीतर रहे।
4.7 छोटे संवर्गों में पोस्ट-आधारित रोस्टर
छोटे संवर्गों में
पोस्ट-आधारित रोस्टर का विशेष महत्व है। सीमित पदों वाले संवर्गों में
वैकेंसी-आधारित रोस्टर से अत्यधिक असंतुलन उत्पन्न हो सकता था।
पोस्ट-आधारित रोस्टर से
छोटे संवर्गों में भी आरक्षण को संतुलित और व्यावहारिक बनाया गया है।
4.8 प्रशासनिक पारदर्शिता और पोस्ट-आधारित रोस्टर
पोस्ट-आधारित रोस्टर
प्रणाली प्रशासनिक पारदर्शिता को बढ़ाती है। प्रत्येक नियुक्ति स्पष्ट नियमों के
अनुसार होती है, जिससे विवाद की
संभावना कम हो जाती है।
यह प्रणाली अधिकारियों
को निर्णय लेने में स्पष्टता प्रदान करती है और मनमानी को रोकती है।
4.9 न्यायालयों द्वारा स्वीकृति
माननीय सर्वोच्च
न्यायालय द्वारा पोस्ट-आधारित रोस्टर प्रणाली को संवैधानिक रूप से मान्य ठहराया
गया है। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि आरक्षण नीति का उद्देश्य दीर्घकालिक संतुलन
बनाए रखना है, न कि अस्थायी
लाभ प्रदान करना।
इन निर्णयों के बाद
पोस्ट-आधारित रोस्टर प्रणाली को व्यापक रूप से अपनाया गया।
4.10 रेलवे बोर्ड की भूमिका
भारतीय रेलवे में
पोस्ट-आधारित रोस्टर प्रणाली को लागू करने का दायित्व रेलवे बोर्ड पर होता है।
रेलवे बोर्ड द्वारा समय-समय पर दिशा-निर्देश,
परिपत्र
और स्पष्टीकरण जारी किए जाते हैं।
इन निर्देशों का पालन
सभी ज़ोनल रेलवे एवं उत्पादन इकाइयों के लिए अनिवार्य होता है।
4.11 पोस्ट-आधारित रोस्टर और प्रशासनिक उत्तरदायित्व
रोस्टर का सही रख-रखाव
प्रशासनिक उत्तरदायित्व का महत्वपूर्ण भाग है। रोस्टर में की गई किसी भी त्रुटि से
न केवल प्रशासनिक असंतुलन उत्पन्न हो सकता है, बल्कि न्यायिक कार्रवाई का भी सामना करना पड़ सकता है।
इसलिए रोस्टर की नियमित
समीक्षा और अद्यतन आवश्यक होता है।
इस अध्याय में पोस्ट-आधारित रोस्टर प्रणाली की अवधारणा, आवश्यकता और कार्यप्रणाली को विस्तार से समझाया गया है। यह स्पष्ट किया गया है कि यह प्रणाली भारतीय रेलवे में आरक्षण नीति को स्थायी, संतुलित और पारदर्शी बनाती है।

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