1. यदि अनुशासनिक प्राधिकारी ने स्वयं जाँच की हो अथवा यदि उसने स्वयं जाँच न करके जाँच अधिकारी से कराई हो, प्रत्येक परिस्थिति में जांच की रिपोर्ट के सभी या किसी पहलू पर निर्णय लेते हुए यह निश्चय करेगे कि उनके विचार से दी जाने वाली शास्ति उनके अधिकारी क्षेत्र में है या नही।
(अ) यदि दी जाने वाली शास्ति उनके अधिकारी क्षेत्र में है तो वे अभिलेख पर उपलब्ध साक्ष्यो के आधार पर अगली कार्यवाही कर सकते है अथवा यदि उनके विचार में न्याय के हित में किसी गवाह का और आगे परीक्षण किया जाना आवश्यक हो तो वे उस गवाह को बुलाकर उसका परीक्षण, प्रतिपरीक्षण एवं पुन: परीक्षण कर सकते है और ऐसी सजा दे सकता है जो उनके अधिकारी क्षेत्र में हो।
(ब) यदि अनुशासनिक प्राधिकारी के विचार से दी जाने वाली उपयुक्त सजा उनके अधिकारी क्षेत्र से बाहर है तो वे जाँच कार्यवाही के तब तक के समूचे कागजातों को सक्षम अनुशासनिक प्राधिकारी के पास भेजेगे जिसपर सक्षम अनुशासनिक प्राधिकारी निर्णय लेंगे ।
2. यदि अनुशासनिक प्राधिकारी स्वयं जाँच अधिकारी नही है एवं जांच रिपोर्ट से सहमत नहीं है तो, वे चाहे तो कारणों का उल्लेख करके, जाँच अधिकारी के पास मामले पर पुन: और आगे विचार करने हेतु भेज सकते है, जिस पर जाँच अधिकारी नियम - 9 के अनुसार "जहाँ तक संभव हो सके वहाँ तक" पुन: आगे जाँच कर सकते है ।
3. यदि अनुशासनिक प्राधिकारी आरोप के किसी शीर्षक (आर्टिकल) पर जाँच अधिकारी के किसी निष्कर्ष से असहमत हो तो असहमति के कारणों का उल्लेख करते हुए आरोप के उस शीर्षक पर अपना निर्णय लिखेगे, बशर्ते ऐसा करने के लिए अभिलेख पर पर्याप्त साक्ष उपलब्ध हो।
4. यदि अनुशानिक प्राधिकारी आरोप के सभी या किसी शीर्षक पर जाँच अधिकारी व्दारा प्रस्तुत रिपोर्ट के आधार पर यह विचार करते है कि नियम - 6 के क्लाज (i) से (iv) के अंतर्गत आने वाली कोई लघु शास्ति दी जानी चाहिए, तो वे नियम - 11 के प्रावधानों पर बिना ध्यान दिये हुए ऐसी सजा का आदेश पारित कर सकते है।
नोट - प्रावधान यह है कि ऐसे हर एक मामले, जिनमे संघ लोक सेवा आयोग की परामर्श लेनी आवश्यक हो, को जाँच प्रक्रिया के सभी कागजातों के साथ आयोग के पास उसकी परामर्श लेनी आवश्यक हो, को जाँच प्रक्रिया के सभी कागजातों के साथ आयोग के पास उसकी परामर्श के लिए भेजेगे और कर्मचारी को कोई दण्ड देने से पूर्व उसकी परामर्श पर अवश्य विचार करेगे ।
5. यदि अनुशासनिक प्राधिकारी आरोप के प्रत्येक या किसी एक शीर्षक पर दिये गये जाँच निष्कर्ष और जाँच के दौरान प्रस्तुत किये गये साक्ष्यों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचता हो कि नियम - 6 के क्लाज (v) से (ix) के अंतर्गत आने वाला कोई दण्ड दिया जाना चाहिए तो वे ऐसा कर सकते है, जिसके आरोपित रेल सेवक को प्रस्तावित शास्ति के संबंध में सूचना देना अथवा प्रतिवेदन करने का अवसर प्रदान करना आवश्यक नही होगा.
i. बर्खास्तगी / पदच्युति के दण्ड के मामले में अनुशासनिक अधिकारी को रेल सेवा (पेंशन) नियम 1993 के नियम 65 के अंतर्गत अनुकम्पा भत्ता या ग्रेचुटी या दोनों के संबंध में भी निर्देश पारित करने चाहिये। (RBE 79 / 05, 164/08)
ii. निचले वेतनमान में दिए गए दण्ड के प्रभावी होने से पूर्व उच्च वेतनमान में पदोन्नति होने पर दण्ड पदोन्नति वाले पद पर उतनी ही अवधि के लिए लागू रहेगा जितना की नीचे वेतनमान में दिया गया था ।(RBE 200/01)
iii. बड़ी शास्ति की अनुशासनिक कार्यवाही को पूरा करने के लिए 150 दिन की मोडल समय अनुसूची निर्धारित की गई है
(Rly.Bd's letter 52E/0126/v/III(E D&AR) dt.07.06.95 & NR PS 11012)
iv. संरक्षा संबंधि अनुशासनिक मामलो में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया RRE 36/03में दी गई है।
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