लघु दण्ड देने की कार्यवाही का क्रम इस प्रकार है -
1. आरोप - पत्र जारी करना
2. सबंधित दस्तावेजो का आरोपित कर्मचारी व्दारा निरीक्षण
3. आरोपित कर्मचारी व्दारा आरोप - पत्र के आरोपों पर लिखित प्रतिवेदन की प्रस्तुति
4. अनुशासनिक प्राधिकारी व्दारा आरोपित कर्मचारी के लिखित प्रतिवेदन पर विचार करके या तो :-
i. कर्मचारी कोआरोप मुक्त करेगा या
ii. अनुशासन एवं अपील नियम - 6 के अंतर्गत (i) से (iv) के दण्ड में से कोई दण्ड देगा या
iii. दीर्घ आरोप - पत्र के लिये नियम - 9 में निर्धारित प्रक्रिया के अंतर्गत जाँच करने का आदेश देना या
iv. जाँच रिपोर्ट पर विचार करके दण्ड देना
1. आरोप - पत्र जारी करना: - अनुशासन एवं अपील नियम के अंतर्गत लघु दण्ड देने के लिए मानक प्रपत्र - 11 का प्रयोग किया जाता है जिसमें कुल चार अनुच्छेद होते है लघु आरोप - पत्र एक प्रकार का कारण बताओ नोटिस होता है जिसमें केवल निम्नलिखित बातों का ही उल्लेख किया जाता है :-
(क) आरोपों के आधार पर कार्यवाही करने का विचार
(ख) आरोपों की संक्षिप्त सूची
(ग) विश्वसनीय प्रलेखो की सूची
नोट :- इसमें गवाहों की सूची नहीं
दी जाती है और न दंडा देने के पूर्व किसी गवाह की गवाही होती है और न ही उनमें कोई
जिरह होती है
लघु आरोप पत्र से सम्बन्धित प्रक्रिया में आरोपित कर्मचारी को अपना अभ्यावेदन प्रस्तुत करने का दस दिनों का समय दिया जाता है जिसके अंतर्गत यदि कोई प्रतिवेदन नही प्रस्तुत किया जाता है तो सीधे एक तरफा दंड दे दिया जा सकता है।
2. संबंधित दस्तावेजों का आरोपित कर्मचारी व्दारा निरीक्षण: - यद्यपि लघु दंड की प्रक्रिया में संबंधित दस्तावेजों का निरीक्षण की सुविधा प्रदान नहीं की गयी है, फिर भी आरोप -पत्र के साथ सबंधित दस्तावेजो की सूची संलग्न करना ही इस बात का संकेत है कि आरोपित कर्मचारी को सबंधित दस्तावेजो का निरीक्षण की सुविधा उसके मांगे जाने पर प्रदान करानी चाहिए.
नोट - यदि कर्मचारी किन्ही ऐसे दस्तावेजो का मांग करता है जिनका उल्लेख आरोप - पत्र में नही हो तो उन्हें उपलब्ध कराने या न कराने का अधिकार अनुशासनिक अधिकारी के पास होगा।
3. आरोपित कर्मचारी व्दारा आरोप - पत्र के आरोपों पर लिखित प्रतिवेदन की प्रस्तुति:- चूकिं लघु आरोप - पत्र की कार्यवाही अत्यंत संक्षिप्त होती है अत: बचाव पत्र में काफी सावधानी से अर्थात आरोपों के हर शीर्ष के आरोप पर अपना तार्किक बचाव प्रस्तुत करते हुए अपने को निर्दोष सिध्द करना चाहिये।
4. अनुशासनिक प्राधिकारी व्दारा लिखित प्रतिवेदन पर विचार:- आरोपित कर्मचारी का प्रतिवेदन प्राप्त होने पर अनुशासनिक प्राधिकारी के सामने निम्नलिखित विकल्प होते है:-
i. यदि आरोपों का समुचित खण्डन किया गया हो तथा
उनके विरुध्द पर्याप्त स्पष्टीकरण दिया गया हो तो आरोपों को समाप्त कर उसकी सूचना
आरोपित कर्मचारी को देना। यह सूचना दो महीने के अंदर अवश्य दे दी जानी चाहिये
ii. यदि आरोपों में ऐसे तथ्य और प्रलेख उपलब्ध हो जिसका समुचित प्रतिवाद न किया गया हो तो आरोप - पत्र के प्रत्येक आरोपों के सम्बन्ध में तर्को का उल्लेख करते हुए दंडारोपण आदेश पारित करा जाएगा, ऐसी स्थिति में निष्कर्ष के कारणों का उल्लेख किया जाना आवश्यक है ।
iii. यदि प्रतिवेदन में यह तथ्य परिलक्षित होता हो कि
न्याय के हित में किन्हीं और मुद्दों पर और आगे जाँच करानी आवश्यक है तो इस आशय का
आदेश देना ।
लघु दण्ड देने की कार्यवाही के क्रम में जांच कराने की आवश्यकता
(क) जांच करानी कब वैकल्पिक है:- 1. नियम - 11 के अनुसार यदि आरोपित कर्मचारी के प्रतिवेदन पर विचार करने से यह निष्कर्ष निकलता है कि न्याय के हित में जाँच करानी आवश्यक है तो अनुशासनिक प्राधिकारी ऐसा आदेश दे सकते है ऐसी स्थिति तभी आ सकती है जब अनुशासनिक प्राधिकारी को इस बात के पर्याप्त प्रमाण मिल जाये कि तथ्यों की सही जानकारी के लिए जाँच की जानी आवश्यक है।
2. यदि आरोपित कर्मचारी व्दारा जाँच कराये जाने की
मांग की जाती है तो जाँच कराना या न कराना नियमो के अंतर्गत अनुशासनिक प्राधिकारी
के स्वविवेक पर आधारित है।
लघु दण्ड देने की
कार्यवाही के क्रम में जांच कराने की अन्य आवश्यकता
(ख) जाँच करानी नियम - (11) 2 के अनुसार अनिवार्य है:-
नियम - (11) 2 में उन परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है जिनके होने पर लघु आरोप - पत्र के आधार पर नियम - 9 के अंतर्गत दीर्घ दंडारोपण की प्रक्रिया अपनायी जानी अनिवार्य है वे तीन परिस्थियाँ निम्नलिखित है :-
i. जब वार्षिक वेतन वृध्दि पर किसी भी अवधि के लिए
स्थायी रोक लगायी जानी हो,
ii. जब वार्षिक वेतन वृध्दि पर तीन वर्ष से अधिक
अवधि के लिए अस्थाई रोक लगायी जाने हो,
iii. जब किसी भी अवधि के लिए स्थायी व अस्थायी वार्षिक वेतन वृध्दि पर रोक से सेवानिवृति लाभ प्रभावित हो रहे हो ।
लघु दण्ड के सबंध मेन आदेशो की
सूचना :- (नियम - 12 )
अनुशासनिक प्राधिकारी व्दारा दिये गये आदेश, जिसमे आरोप की प्रत्येक
मद पर उसके निष्कर्ष भी होंगे, रेल
सेवक को संसूचित किये जायेगे, उसे आयोग व्दारा दी गई
सलाह यदि कोई हो,
की एक प्रति तथा जहाँ अनुशासनिक प्राधिकारी ने आयोग की सलाह को
स्वीकार नही किया है,
वहाँ ऐसी अस्वीकृति के कारणों का संक्षिप्त विवरण भी दिया जायेगा
(संरक्षा सम्बन्धी अनुशासनात्मक मामलो में अपनाई
जाने वाली प्रक्रिया (RBE 36/03) में स्पष्ट की गई है)
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