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विविध


अनुग गृह  राशि 

पांचवे वेतन आयोग के उपरांत 1 अगस्त, 1997 से उन कर्मचारी के मामलों में जिन पर श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होते है उनके परिवार को अनुगृह क्षतिपूर्ति का एकमुश्त भुगतान करने का नियम एवं परिस्थितियां निम्न प्रकार से विहीत की गई है -

ड्यूटी के दौरान दुर्घटना में मृत्यु - 5 लाख रूपये
ड्यूटी के दौरान आंतकवादी और असामाजिक तत्वों की हिंसात्मक गतिविधियों के  कारण मृत्यु 5 लाख रूपये

अंतराष्ट्रीय युद्ध या सीमा के झगडो  में दुश्मन देश की कार्यवाही से मृत्यु अथवा आंतकवादियों/ उग्रवादियों इत्यादि के खिलाफ कार्यवाही में मृत्यु  7.5 लाख रूपये

 पुरस्कार एव  प्रोत्साहन

 रेल कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने के  उद्देश्य से तथा उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के  लिए पुरस्कार देने के  नियम रेलवे मे प्रभावी है। यह पुरस्कार सामान्यतया प्रतिवर्ष अप्रैल माह में  रे ल सप्ताह मनाने के  दौरान प्रदान किये जाते है। इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत रूपसे पुरस्कार भी अन्य अवसरों पर दिये जाते है, जो निम्न प्रकार है -

  • महाप्रबंधकने  वरिष्ठ वेतनमान अधिकारियों को 5,000 रूपये प्रति व्यक्ति तथा कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड से उच्चतर ग्रेड  के अधिकारी को 3,000 रूपये प्रति व्यक्ति पुरस्कार के अधीन प्रदान कर रखें है।
  • रेल कर्मचारियों को दुर्घटना मुक्त सेवा उपलब्ध कराने  के लिए भी पुरस्कार की योजना प्रचलित है जिससे कर्मचारी अभिप्रेरित होते है। वर्तमान में 10 वर्ष की दु र्घटना मुक्त सेवा पर प्रमाण-पत्र एवं 1,000 रूपये, 20 वर्ष की दुर्घटना मुक्त सेवा पर प्रमाण-पत्र एवं 2,000 रूपये एवं सेवा निवृति तक दुर्घटना मुक्त सेवा पर प्रमाण-पत्र, स्वर्ण पदक एवं 3,000 रूपये पुरस्कार देने का प्रावधान है।
  • ड्यूटी के दौरान यदि कर्मचारी ने यात्री जनता के जीवन या रेल संपति की सुरक्षा में प्रशंसनीय भुमिका निभाई हो तथा इस कार्यवाही मे ंकर्मचारी की मृत्यु हो गई हो तो नियमों के अधीन कर्मचारी को अनु  गृह राशि के साथ-साथ नकद पूरस्कार/मेडल प्रदान किया जाता है। उसकी विधवा/कानूनी वारिश को 10,000 रूपये तक कर्मचारी के मराणोपरांत पुरस्कार दिया जाता है।
  • कारखानों एवं उत्पादन इकाईयों में उत्पादकता बढ़ाने  के  लिए कर्मचारियों एवं उनके पर्यवेक्षकों को प्रोत्साहन बोनस योजना के  तहत भुगतान किये जाने के  नियम है।
  • सभी अराजपत्रित रेल कर्मचारियों को प्रतिवर्ष उत्पादकता आधारित बोनस प्रदान करने के  प्रावधान बनाये गये है जिसके  लिए आधार वर्ष 1977-78 को माना गया है तथा यह प्रतिवर्ष जी.टी.के .एम./एन.टी.के .एम. के आधार पर उत्पादकता का आंकलन कर प्रदान किया जाता है। उल्लेख है कि वर्ष 2004-05 यह 59 दिनों के  वेतन के बराबर प्रदान किया गया है।
  • रेलवे सुरक्षा बल के  कर्मचारियों को प्रोत्साहन के रूपमें तदर्थ बोनस प्रदान किया जाता है।
आवेदन पत्र अग्रेषित करना

रेल कर्मचारी के  सेवा में रहते हुए अवसर के मूलाधिकार के तहत अन्य सरकारी विभाग सार्वजनिक क्षेत्र केन्द्रीय या राज्य सरकारों द्वारा पोषित एवं नियंत्रित निकाय/संस्थान/उपक्रम इत्यादि में नियुक्ति हेतू  विज्ञापन के प्रकाशन के प्रतित्युतर मे आवेदन पत्र भेजने के प्रावधान है। कर्मचारी को एक वर्ष में चार अवसर आवेदन पत्र प्रस्तुत करने  के उपलब्ध है। जहाँ तक लोक हित में आवेदन पत्र को रोकना आवश्यक नहीं हो, आवेदन पत्र अग्रेषित करने के प्रावधान है। यदि आवेदन पत्र रोकना आवश्यक हो तो इसके लिए विनिर्दिष्ट कारणों को उल्लेखित कर कर्मचारी को सूचित करना चाहिए, उदाहरणार्थ -
रेल कर्मचारी महत्वपूर्ण परियोजना पर पदस्थ हो और उसे कार्यमुक्त करने की स्थिति में कार्य अस्त-व्यस्त होने  की संभावना हो,
रेल कर्मचारी निलम्बित हो अथवा उसके विरूद्ध विभागीय अथवा न्यायिक कार्यवाही विचाराधीन हो,
रेल कर्मचारी जिस पद के लिए आवेदन कर रहा हो वह वर्तमान पद से निम्न अथवा समान हैसियत का हो।

किसी प्राइवेट उपक्रम में नियोजन के लिए रेल कर्मचारी का आवेदन अग्रेषित तभी किया जा सकता है जब वह रेल सेवा से त्याग पत्र प्रस्तुत करें अथवा नियमाधीन सेवा निवृति प्राप्त कर लें।

नाम परिवर्तन 

कोई भी रेल कर्मचारी अपने  मौजूदा नाम में परिवर्त न करना चाहे अथवा नया नाम रखना चाहे तो उसे इस संबंध में एक विलेख (डी) औपचारिक रूपसे प्रस्तुत करनी होती है तथा निर्धारित फार्म में विलेख के निष्पादन के बाद नाम परिवर्तन की सूचना दैनिक समाचार पत्र में स्वयं के  खर्चें पर प्रकाशित करानी होती है। इसके उपरांत कर्मचारी के परिवर्तित नाम को सरकारी अभिलेखों में तदनुसार  संशोधित करने  का कार्य आदेश सक्षम अधिकारी द्वारा जारी किया जाता है और सर्व संबंधित को प्रेषित किया जाता है।

 महिला कर्मचारी के विवाहापरांत नाम अथवा उसके सरनेम में परिवर्त न होता है तो इसके लिए उपरोक्त तरीके  से ‘डीड’ निष्पादित करने  की आवश्यकता नहीं होती। मात्र महिला कर्मचारी के साधारण आवेदन पत्र पर सक्षम अधिकारी परिवर्तित नाम स्वीकार करके कार्यालय आदेश जारी कर सकता है तथा सरकारी रिकोर्ड में नोट करवा सकता है।

विभागीय त्रुटिवश किसी कर्मचारी का नाम सरकारी रिकोर्ड में गलत दर्ज हो जाय और कर्मचारी द्वारा इस पर आपति की जाय तो यथा आवश्यक कार्यालय आदेश जारी कर शुद्धि कर रिकोर्ड दुरस्त करने  के  प्रावधान है।

जन्म तिथि  में परिवर्तन

प्रत्येक रेल कर्मचारी को सेवा में प्रवेश के  समय अपनी जन्म तिथि घोषित कर प्रमाण स्वरूपदस्तावेज/प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने होने होते है और सामान्य नियमानुसार एक बार जन्म की तारीख रिकोर्ड में दर्ज होने के उपरान्त उसमें कोई परिवर्त न स्वीकार्य नहीं होता किंतु कतिपय परिस्थितियों में ग्रुप  ए व बी अधिकारियों के मामलों में राष्ट्रपति एवं ग्रुप सी व डी कर्मचारियों के लिए महाप्रबंधक जन्म तिथि में परिवर्तन की अनु मति प्रदान कर सकते है। ये परिस्थितियाँ निम्नांकित है -

रेल कर्मचारी ने ऐसा कोई लाभ पाने के  लिए जन्म तारीख मिथ्या बताई हो जो अन्यथा उसे प्राप्य नहीं था बशर्ते जन्म तिथि में परिवर्त न के उपरान्त कर्मचारी को रेल सेवा में पहले से अधिक लाभ न मिलता हो।
ग्रुप डी कर्मचारियों के मामलों मे  लिपिकीय त्रुटि हो गई हो तो महाप्रबंधक परिवर्तन की अनुमति प्रदान कर सकते  है।

रेल कर्मचारी उन परिस्थितियों  के बारे में जिनकी वजह से जन्म तिथि गलत दर्ज हो गई हो कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण प्रस्तुत  करें और जन्म तिथि में परिवर्तन बाबत किये गये प्रत्यनों के बारें अभिलेख प्रस्तुत करे  तो इसकी अनुमति दी जा सकती है। उदाहरणार्थ - सैकेण्डरी की अंकतालिका मे जन्म तिथि गलत दर्ज हो गई हो और कर्मचारी ने संबंधित शिक्षा बोर्ड से इसे संशोधित करने का प्रत्यन किया हो। इस तरह के अभिलेख मान्य किये जाते  है, लेकिन ऐसा परिवर्तन तभी स्वीकार किया जायेगा जब कर्मचारी का प्रोबेशन चल रहा है अथवा सेवा में प्रवेश  के पाँच वर्ष पूरे नहीं हुए हो।

सेवा निवृति से पहले जन्म तिथि में परिवर्त न किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नही होता है।

रेलवे  आवास आवटन के  नियम

भारतीय रेलों में कल्याण सुविधा के रूपमें  रेलवे आवास का आवंटन लगभग 40 प्रतिशत कर्मचारियो को  प्रदान किया गया है। इसके संबंध में विभिन्न नियम-उपनियम एव दिशा-निर्देश रेलवे बोर्ड द्वारा जारी किये गये है जिसे मास्टर सर्कूलर नं. 49 में सार संग्रहित किया गया है। कुछ महत्वपूर्ण तथ्य इस बाबत निम्न प्रकार है -

  • रेलवे आवास के आवंटन हेतु  सामान्य रूपसे एक हाऊसिंग कमेटी होती है जो आवंटन के बारे में निर्णय करती है। इसमे एक अधिकारी और दोनों मान्यता प्राप्त यूनियन से एक-एक सदस्य तथा एक अनुसूचित जाति-जन जाति संघ का सदस्य भी होता है।
  • कर्मचारियो की पात्रता श्रेणी के अनु सार रेलवे आवास हेतु  अनिवार्य कोटि एवं गैर अनिवार्य कोटि के नाम से अलग-अलग पूल बनाये गये है। जिसके लिए प्रत्येक इकाई में नाम पंजिकरण हेतु प्राथमिकता रजिस्टर तैयार किये गये है जो रेलवे आवास आवंटन समिति के  समक्ष आवास को संबंधित कर्मचारियों को क्रमानुसार आवंटित करते है।
  • क्वार्ट र आवंटन में कतिपय परिस्थितियों में बिना बारिकी आवंटन, डाॅक्टरी आधार पर आवंटन, विकलांग कर्मचारियो के लिए आवंटन, मृतक कर्मचारियों के आश्रितों को आवंटन, अनुकंपाके आधार पर नियुक्ति के मामलो  में आवंटन, इत्यादि  के लिए दिशा-निर्देश की अनुपालना आवंटन समिति द्वारा की जाती है।
  • रेलवे आवास को अन्य रेल कर्मचारियों के साथ सहभागिता की अनुमति प्रदान करने  के प्रावधान भी बनाये गये है। जिसके अनुसार ही कर्मचारियों को अनुमति प्राप्त कर सहभागिता देनी चाहिए। अन्यथा सबलेट के मामलें पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाती है।
  • रेलवे आवास का उपयोग कर्मचारी अथवा उसके परिवार के सदस्य द्वारा रिहायश के अलावा किसी अन्य वाणिज्यिक कार्य जैसे बीमा एजेसी, कमीशन एजेंसी, व्यापार इत्यादि के लिए करना या बाहरी व्यक्तियों को सबलेट पर देना दुरूपयोग की श्रेणी में आता है। जिसके लिए अनुशासनिक कार्यवाही करने का प्रावधान है।
  • स्थानान्तरण/प्रतिनियुक्ति, सेवा निवृति, प्रशिक्षण अथवा उसी उपनगरीय क्षेत्र में  स्थानान्तरणके मामलों मे  रेलवे आवास को नियत अवधि तक रोक कर रखने की अनुमति प्राप्त करने का प्रावधान है।
  • रनिंग कर्मचारियों को क्वार्टर आवंटन के मामलें में सामान्य कर्मचारियों से अधिक वेटे ज देते हुए उच्च पात्रता प्रदान की जाती है, जो निम्न प्रकार है -
प्रत्येक तीन वर्ष में रेलवे आवास के लिए लाइसेंस फीस (किराया) का संशोधन करने का प्रावधान है। जिसकी कटौती कर्मचारी के वेतन से की जाती है।
ग्रुप ए,बी,सी वर्ग के कर्मचारियों से रेलवे आवास में पानी के उपभोग का प्रभार भी नियमानुसार लिया जाता है लेकिनग्रुप डी कर्मचारियों से यह प्रभार लेने का प्रावधान है।
संकाय सदस्य के रूपमें प्रशिक्षण संस्थानों मे पदस्थ किये जाने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों को अपने  पूर्ववर्ती स्टेशन पर रेलवे आवास पर सामान्य किराये के भुगतान पर दो वर्षो  की अवधि तक रोकने की अनुमति प्रदान करने  के प्रावधान है।
रेलवे आवास को खाली न करने, अनाधिकृत रूपसे कब्जा करने  के मामलों मे  पैनल  रेट से वसूली करने का प्रावधान है। जो प्लिंथ या कुर्सी क्षेत्र  के आधार पर गणना कर वसूल किया जाता है। इसकी दरें प्रति वर्ग मीटर प्रतिमाह के हिसाब से विभिन्न शहरों  के वर्गीकरण के अनुसार प्रति दो वर्षो  के लिए निर्धारित की जाती है।

विकोटिकरण और समायोजन

कोई भी रेल सेवक सेवा के दौरान हुई अशक्तता के कारण दृष्टि परीक्षा या अन्यथा चिकित्सा आधार पर विकोटिकृत हो जाता है और जिस पद पर वह कार्यरत हो उसके कार्य को करने में शारिरीक दृष्टि से असमर्थ रहता हो तो उसे उस पद से हटाकर अन्य समान वेतनमान में सभी लाभों सहित किसी दूसरे पद पर समायोजित करने का प्रावधान होता है।

चिकित्सीय आधार पर विकोटिकृत कर्मचारियों को दो वर्गो  में बाटा गया है -

ऐसे कर्मचारी जो रेलवे में किसी भी पद पर आगे सेवा करने  के  लिए पूर्णतया निशक्त (अनफिट) हो।
ऐसे कर्मचारी जो वर्तमान धारित पद पर सेवा करने  में निशक्त है परंतु निम्न चिकित्सा कोटि के घोषित पद पर कार्य करने में सक्षम हो।
पहली श्रेणी के कर्मचारियों को मेडीकल बोर्ड की सिफारिश के आधार पर सेवा निवृत करने के प्रावधान है जिसमें सभी लाभो  का भुगतान किया जाता है। दूसरी श्रेणी के कर्मचारियों को मेडीकल विकोटिकृत होने के उपरांत उनके लिए वैकल्पिक नियोजन का पता लगाया जाता है तब तक उन्हें सभी लाभों सहित विशेष अधिसंख्यक पद पर लगाया जा सकता है। जैसे ही उन्हें किसी पद पर समायोजित किया जाता है। अधिसंख्यक पद को समाप्त कर दिया जाता है।
प्रावधान है कि कर्मचारी को उसी विभाग के अन्य अनुभाग में उपयुक्त वैकल्पिक पद पर लगाने का गंभीर प्रयत्न किया जाना चाहिए जब ऐसा करना संभव नहीं हो तब  उसे अन्य विभाग मे  समाहित करने का उपाय किया जाना चाहिए।
स्वास्थ्य के आधार पर विकोटिकृत किये गये रनिंग कर्मचारियों को वैकल्पिक नियोजन में समाहित करने के    उद्देश्य से वेतनमान का निर्धारण करने के  लिए रनिंग भत्ता  के  बदले मे  उस वेतन के प्रतिशत जो भी लागू हो, के बराबर राशि, रनिंग कर्मचारियों के  न्यूनतम और अधिकतम वेतनमान में जोड़ दी जायेगी। यदि इस प्रकार निर्धारित किये गये वेतनमान पहले से मौजूद वेतनमान के अनुरूपनहीं है तो उस वेतनमान को मौजूदा वेतनमान में परिवर्तित करने के प्रावधान है।
वैकल्पिक पद पर समाहित किये गये विकोटिकृत रेल सेवक की पिछली सेवा को वैकल्पिक पद में सभी प्रयोजनों के लिए निरतर सेवा माना जाता है।
वैकल्पिक पदों पर समाहित किये गये रेल कर्मचारियों की वरिष्ठता का निर्धारण अशक्त घोषित किये जाने के   पूर्व अथवा तदनुरूपी ग्रेड में अनाकस्मिक आधार पर की गई उनकी सेवा अवधि के संदर्भ में समाहित ग्रेड में वरिष्ठता प्रदान की जाती है लेकिन इस मामलें में यह शर्त होती है कि विकोटिकृत कर्मचारी जिसे उस ग्रेड में समाहित किया जाना हो, जिस ग्रेड से वह मूलतः पदौन्नत हुआ था, तो उसे समाहित ग्रेड में उसके  पहले के   वरिष्ठों से ऊपर नहीं रखा जायेगा।
रनिंग स्टाफ में चिकित्सीय आधार पर अयोग्य ठहराये गये कर्मचारियों को स्क्रीनिंग के  उपरांत निम्न कोटियों में लगाने के  प्रावधान है -
  • सहायक लोको फोरमेन
  • पावर कंट्रोलर
  • शेडमेन
  • टेलीफोन क्लर्क
  • कल्याण निरीक्षक
  • गाड़ी लिपिक
  • कट्रोल कार्यालय में लिपिक
  • हाॅस्टल वार्डन
  • अस्पताल अधीक्षक
  • क्षेत्रीय प्रशिक्षण संस्थानों मे  प्रशिक्षक

रेलवे सुरक्षा बल के  कर्मचारी जो डाॅक्टरी आधार पर विकोटिकृत किये गये हो उन्हें सुरक्षा बल में लिपिकीय पदों पर समाहित करने  की संभावना पर विचार किया जाता है, यदि ऐसा संभव नहीं हो तो ही दूसरे  विभागों में समाहित किया जाता है।
चिकित्सीय आधार पर विकोटिकृत किये गये रेल कर्मचारी जो 7.2.1996 को या इसके उपरांत किंतु 28.4.99 तक चिकित्सा दृष्टि से विकोटिकृत होकर वैकल्पिक रोजगार में नियमित आधार पर प्राप्त गे्रड से निम्नतर ग्रेड में समाहित किये गये हो उनसे आवेदन प्राप्त होने पर पुनरीक्षा करने का प्रावधान है। ताकि उन्हें समान वेतनमान का लाभ दिया जा सके। लेकिन ऐसे मामलें जहाँ विकोटिकृत कर्मचारियों ने  अनुकंपा के आधार पर पात्र आश्रित की नियुक्ति की मांग करते  हुए सेवा निवृत होने का विकल्प दिया हो उन मामलों मे  पुनरीक्षा नहीं की जाती है।

मानदेय

रेल कर्मचारियों को प्रोत्साहन देने के  उद्देश्य से तथा बकाया कार्यों /विशेष कार्यो  को शीघ्रता से पूरा करने के लिए भारत सरकार की समेकित निधि में से आवृती और अनावृती भुगतान को करने की योजना को मानदेय के नाम से जाना जाता है। यह एक पारिश्रमिक होता है जो कर्मचारियों को कार्यालय समय के उपरान्त विशेष प्रकृति के कार्यों को पूरा करने के लिए आकस्मिक रूपसे सक्षम अधिकारी से मंजूर किया जा सकता है। मानदेय निम्न मामलों मे  मंजूर करने के  प्रावधान है। -

  • एरियर का भुगतान
  • पेंशन आॅर्डर आदेश का संशोधन
  • भविष्य निधि खातों की समीक्षा
  • पास-पी.टी.ओ. का मूल्यांकन
  • गैस्टेटनर आॅपरेटर द्वारा निर्माण कार्यक्रम की छपाई तथा साइक्लोस्टाइल करना
  • पुनर्निर्धारित किये जाने पर मंहगाई भत्तों  का भुगतान
  • आयकर विवरणियों को तैयार करना एवं उसकी जांच करना
  • बोनस भुगतान हेतु बोनस कार्ड तैयार करना
  • गोपनीय रिपोर्ट को भरने संबंधी कार्य
  • वेतन आदि बांटने के  लिए लेखा लिपिकों, रेल सुरक्षाबल निरीक्षकों इत्यादि को मानदेय
  • जांच अधिकारी और प्रस्तुती  अधिकारी को मानदेय
  • मध्यस्थ के रूपमें कार्य करने वाले अधिकारियों को मानदेय
  • आकाशवाणी पर प्रसारण के  लिए मानदेय
  • रेल भर्ती बोर्ड की परीक्षाओं को आयोजित करने के लिए मानदेय
  • साक्षात्कार/चयन प्रक्रिया संबंद्ध रेल अधिकारियों के लिए मानदेय
  • प्रशन पत्र बनाने, उत्तर  पुस्तिकाओं का मूल्यांकन करने के  लिए मानदेय
  • प्रशिक्षण संस्थानों अथवा कार्यालय में अतिथि व्याख्याता के  रूपमें लेक्चर देने हेत ु मानदेय
  • रेल पत्रिकाओं मे  मौलिक लेख, कहानी, कार्टून इत्यादि के लिए मानदेय
  • चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को कार ड्राइवर के पद पर अस्थाई पद पर कार्य करने के  लिए मानदेय
  • कर्मचारी हित निधि से पोषित होमियोपैथी और आयुर्वै दिक/दंत चिकित्सकों को मानदेय
  • क्षेत्रीय भाषाओं से अंग्रेजी और हिन्दी में अनुवाद करने के  लिए मानदेय
  • अन्य विशेष अवसरो पर स्वीकृत मानदेय
शुल्क (फीस)

रेल कर्मचारी द्वारा भारत सरकार की समेकित निधि अथवा राज्य सरकार की संचित निधि से भिन्न अन्य स्रोत से किसी कार्य को अथवा सलाह देने के बदले लिये गये आवृती और अनावृती पारिश्रमिक को शुल्क कहा जाता है। इसे प्राप्त करने की सूचना कार्यालय को देनी होती है तथा 500 रूपये से अधिक राशि शुल्क के रूपमें लेने पर एक तिहाई राशि संबंधित रेल कर्मचारी को रेलवे राजस्व में जमा कराना होता है।

धारणाधिकार (लियन)

रेल कर्मचारी का वह अधिकार है जिसके आधार पर वह कोई स्थाई पद, या तो तुरत या अनुपस्थिति /छुटटी  की किसी अवधि के बाद, अधिशाषी रूपसे धारण कर सकता है। इसमें कोई भी सावधिक पद/बाह्य संवर्ग पद भी सम्मिलित है जिस पर कर्मचारी अधिष्ठाई रूपसे नियुक्त किया गया हो।

बाह्य सवर्ग पद (एक्स केडर पद)
ऐसे पद जिनका सृजन विशेष प्रकार के कार्यो को निष्पादित करने के  लिए किया गया हो  तथा जिनका संबंध नियमित कार्यो  के  साथ नहीं होता जो नियमित केडर से अलग केडर से संबंधित होते है, एक्स केडर पद कहलाते है। इस पर निर्धारित अवधि से अधिक कर्मचारी को पदस्थ नहीं किया जा सकता। इस पर चयन के लिए पात्रता परीक्षा/साक्षात्कार इत्यादि के प्रावधान है। उदाहरणार्थ क्षेत्रीय रेलवे प्रशिक्षण संस्थान में प्रशिक्षकों, कल्याण निरीक्षकों, सतर्कता निरीक्षकों इत्यादि पद एक्स केडर के पद है।

एकीकृत वरियता

रेल प्रशासन में कुछ सेवाओं में चयन हेतु  विभिन्न वरियता समूहों मे  से कर्मचारियों का चयन किया जाता है। जिसके  लिए एकीकृत वरियता सूची तैयार की जाती है। इस सूची बनाने का आधार कर्मचारियों की सेवा काल की अवधि के  आधार निर्धारित किया जाता है। यह सूची एकीकृत वरियता कहलाती है। इसको बनाते समय परस्पर वरियता (इंटरसी सिनीयोरिटी के नियम का पालन किया जाता है। उदाहरणार्थ इंजीनियरिंग विभाग क े समूह ‘ख’ के  चयन के  लिए पात्र वर्गों मे से निर्माण निरीक्षक, रेल पथ निरीक्षक, पुल निरीक्षक इत्यादि की आपसी वरियता के आधार पर एकीकृत वरियता सूची तैयार की जाती है।

अकार्य दिवस

कोई भी रेल कर्मचारी गैर कानूनी हड़ताल में भाग ले तो उसकी सेवा से अनुपस्थिति को सेवा में व्यवधान (ब्रेक) माना जाता है जो कि पिछली सेवा को समाप्त कर देता है और सेवा निवृति पर अनहर्क सेवा (नाॅन क्लाईफाइंग सर्विस) में गिना जाता है। लेकिन यदि सक्षम अधिकारी की स्वीकृति से इसे अकार्य दिवस अर्थात जैसे ये दिन थे ही नहीं के  रूप में मान लिया जाय तो सेवा मे व्यवधान न रहकर अकार्य दिवस बन जाता है। जो पिछली सेवा और वर्त तान सेवा के बीच में एक पुल के रूपमें काम करता है अर्थात हड़ताल के पहले के  सेवा काल को हड़ताल के  बाद के  सेवा काल के साथ निरंतर मान लिया जाता है। ऐसे दिन बिना वेतन के माने  जाते है और इन्हें नाॅन क्वालीफाईंग सर्विस में गिना जाता है। रेलवे में इसकी स्वीकृति अराजपत्रित कर्मचारियों  के मामलो   मे राष्ट्रपति की ओर से विभागाध्यक्ष/मंडल रेल प्रबंधक प्रदान कर सकते है। राजपत्रित मामलों  मे रेलवे बोर्ड द्वारा स्वीकृति प्रदान की जाती है।

आदेश लागू  होना

सामान्य रूपसे कोई भी आदेश उस तारीख से लागू होता है। जिस दिन वह जारी किया जाय। लेकिन यदि आदेश मे कोई पिछली तारीख उल्लेखित कर दी जाय तो आदेश पिछली तारीख से माना जाता है। जैसे मंहगाई भत्तों  का संशोधन, केडर का पुनर्निर्धारण इत्यादि।

इतर सेवा अभिदान (एफ.एस.सी.)

किसी रेल कर्मचारी के आवेदन पर यदि उचित माध्यम से उसे इतर सेवा के लिए भेजा जाता है जो कि किसी अन्य नियोक्ता के अधीन हो तथा जिसका वेतन भुगतान गैर रेलव े साधनों से किया जाय तो कर्मचारी से/उसके नियोक्ता से इतर सेवा अभिदान प्राप्तकरना होता है। जिसमें पेंशन का मूल्य, छुट्टी वेतन का मूल्य, भविष्य निधि में सरकार केअंशदान का मूल्य इत्यादि को सम्मिलित किया जाता है। अंशदान की दरे  भारतीय रेलवेस्थापना संहिता के भाग दो में उल्लेखित की गई है।

अधिसख्यक पद (सुपरन्यूमरी पोस्ट)

जब रेल कर्मचारी के  लिए कोई अन्य अस्थाई अथवा स्थाई पद उपलब्ध नहीं हो जिस पर उसे धारणाधिकार प्रदान किया जा सके  तो ऐसी स्थिति में जो पद सृजित किये जाते है उसे अधिसंख्यक पद कहते है। यह एक छांया पद होते है। इस पद के साथ कोई कर्तव्य  /ड्यूटी संलग्न नहीं होती, मात्र रेल कर्मचारी को धारणाधिकार उपलब्ध कराने हेतु  व्यक्तिगत रूपसे इसका सृजन किया जाता है। इस पर कोई अन्य कर्मचारी कार्य नहीं कर सकता अथवा पदस्थ नहीं किया जा सकता। संबंधित कर्मचारी की सेवा निवृति अथवा अन्य नियमित पद पर पदौन्नति या कारणवश यह पद रिक्त होता है तो यह पद समाप्त माना जाता है अर्थात ऐसे पद पर स्थानापन्न नियुक्ति नहीं की जा सकती। रेल प्रशासन को इसका पूरा रिकोर्ड अलग से रखना होता है।

केन्द्रीय  प्राशासनिक अधिकरण (कैट)

केन्द्र सरकार के सभी सिविल कर्मचारियों को सेवा नियमों के सभी विवादों को शीघ्रता से निपटाने  के उद्देश्य से 01.11.1985 से केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना की गई। इसकी मुख्य पीठ नई दिल्ली में और अन्य मुख्यालय पूरे देश में 15 स्थानों पर बनाये गये है। जो सामान्यतः प्रत्येक राज्य  के उस नगर में स्थित है जहाँ उच्च न्यायालय की पीठ हो।

 केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण की मुख्य पीठ में एक अध्यक्ष होता है जो वर्तमान अथवा पूर्व न्यायधीश होना चाहिए तथा चार सदस्य उसके सहयोग  के लिए होते है, इनमें दो न्यायिक और प्रशासनिक सदस्य होते है। अन्य पीठों में प्रमुख व एक उपाध्यक्ष और दो सदस्य होते है जिनमें एक न्यायिक और प्रशासनिक होता है। कैट की सभी पीठ  अपने  क्षेत्राधिकार के अनुसार सेवा संबंधी मामलों पर कार्य करती है। उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के सिवाय शेष सभी न्यायालयों के द्वारा प्रयोग की जाने वाली सभी शक्तिया   कैट द्वारा प्रयोग की जाती है अर्थात गवाह बुलाना, दस्तावेजों का अन्वेषण, शपथ पत्रों पर  गवाही लेना, अपने ही निर्णयों का पुनरीक्षण करना इत्यादि।


कैट में भर्ती, वेतन निर्धारण, गोपनीय रिपोर्ट , अनुशासनात्मक कार्यवाही, चयन,  वरियता, पदौन्नति, पेंशन, भविष्य निधि, स्थानान्तरण, वेतन भत्तों , आवास आवंटन, आकस्मिक श्रमिक इत्यादि विशेष क्षेत्र के मामलें सुनवाई के लिए स्वीकार किये जाते  है।

कर्मचारी जो कैट में अपना विवाद ले जाना चाहता है। आवेदन पत्र छः सैट में तैयार कर संबंधित कैट की शाखा मे  निर्धारित शुल्क जो वर्तमान में 50 रूपये है, रेखाकित पोस्टल आॅर्डर /डिमांड ड्राफ्ट के  माध्यम से रजिस्ट्रेशन हेतु  प्रस्तुत कर सकता है। यह पंजीकरण संबंधित रजिस्ट्रार के पास होता है।

आवेदन प्राप्त होने पर कैट प्रतिवादी को स्वीकृति अथवा अंतरिम राहत के लिए नोटिस जारी करता है तथा अपना पक्ष प्रस्तुत  करने के  लिए तारीख का आवंटन करता है।

आवंटित तारीख को दोनों पक्षों को हाजिर होकर मौखिक दलीलों, दस्तावेजों का प्रस्तुतीकरण इत्यादि करना होता है। आवश्यक होने पर कैट जांच की अनुमति देता है और प्रकरण के पूर्ण अध्ययन के उपरांत खुली कोर्ट में निर्णय लिखकर सुनाया जाता है।

कैट के निर्णय के विरूद्ध यदि अपली नहीं की जाती है तो फैसले पर छः माह के भीतर अमल करना होता है।
फैसलें में यदि कोई त्रुटि रह जाती है तो पुनरीक्षण योचिका दायर करने का प्रावधान भी है
कैट के निर्णय को लागू  नहीं करने पर अवमानान का मामला भी कर्मचारी दायर कर सकता है।

कैट के  निर्णयों के विरूद्ध अपली उच्च न्यायालय/उच्चतम न्यायालय में की जा सकती है।

कैट के निर्णय के विरूद्ध उच्च न्यायालय में अपील  के  उपरांत पुनः निर्णय के विरूद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील करनी हो तो कर्मचारी को विशेष अनुमति याचिका प्राप्त कर अपील निर्णय के तीन माह के भीतर दायर करनी होती है।

केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण की वर्तमान में निम्नलिखित पीठ तथा उनका कार्यक्षेत्र उल्लेखित किया गया है जिसमें कर्मचारी को वर्तमान पदके  केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण के क्षेत्राधिकार के अनुसार आवेदन करना होता है -

पीठ का मुख्यालय                                                                         कार्यक्षेत्र

नई दिल्ली                                                                           राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली

अहमदाबाद                                                                               गुजरात  

इलाहाबाद                                                                           उत्तर  प्रदेश  - संपूर्ण राज्य
                                                                                           (लखनऊ पीठ में आने वाले 15

                                                                                         जिलें छोड़कर) एवं उतरांचल

लखनऊ                                                                              लखनऊ, हरदोई, खीरी,

                                                                                          रायबरेली, सीतापुर, उन्नाव,

                                                                                            फैजाबाद, बहराईच, वाराणसी,

                                                                                           गोंडा, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर,

                                                                                            अंबेडकर नगर, श्रावस्ती,

                                                                                              बलरामपुर
   
बैंगलोर                                                                              कर्नाटक

चंडीगढ ़                                                                           पंजाब, हरियाणा, हिमाचल

                                                                                        प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और

                                                                                          चण्डीगढ़
कोलकाता                                                                           पश्चिम बंगाल, सिक्किम,

                                                                                           अण्डमान-निकोबार द्वीप

                                                                                            कटक उड़िसा
इर्नाकुलम                                                                        केरल व लक्षद्वीप

गुवाहाटी                                                                             असम, मणिपुर, मेघालय,

                                                                                          मिजोरम, नागालैण्ड, अरूणाचल

                                                                                           प्रदेश, त्रिपुरा
हैदराबाद                                                                              आंध्र प्रदेश

जबलुपर                                                                            मध्य प्रदेश

जोधपुर                                                                               राजस्थान - जयपुर पीठ के

                                                                                         जिलों को छोड़कर
जयपुर                                                                                अजमेर, अलवर, भरतपुर, बुदी,

                                                                                         जयपुर, झुझनू, कोटा,
                                                                                           
                                                                                          सवाईमाधोपुर, सीकर, दौसा,
                                                                                            धौलपुर, झालावाड़, टोंक व

                                                                                              करौली

चैन्नई                                                                              तमिलनाडू और पांडिचेरी

मुम्बई                                                                                   महाराष्ट्र, गोवा, दमन दीव,

                                                                                                 दादरा और नागर हवेली
पटना                                                                                         बिहार

सतर्कता

सतर्क ता सावधान और चैकस रहने  की स्थिति है। समाज में और खासकर सरकारीमहकमे में जो भ्रष्ट आचरण बढ़े हैं, उनके  कारण सतर्क ता संगठन एक महत्वपूर्ण विभाग  बन गया है। सतर्कता विभाग प्रबंध और प्रषासन का एक शक्तिषाली और अमोध तथा अक्षय मित्र बन गया है। कभी-कभी उसकी स्थिति बहुत प्रसन्नता वाली नहीं होती। 

  • सतर्क ता का प्रभाव नीचे दिए गए माध्यमों से बहुत ही सकारात्मक, निर्माण करने  वाला  और उत्प्रेरक हो सकता है -
  • कार्यविधि के जटिल होने या उसके प्रति लापरवाही बरतने पर पहले से खतरे की घंटियां बजाना,
  • उद्देष्यों को प्रयोजनपूर्ण और प्रभावी प्राप्ति के लिए मार्गों में जैसे  संकेत के बोर्ड लगाकर, पथ प्रषस्त करना,
  • स्थितियों को सही बनाने के प्रयत्न और साधारण रूपसे रोग-निरोधक दवा सरीखा काम करना,
  • भ्रष्ट और दुष्ट व्यक्तियों को समाप्त करना।

संदर्भित कानून -

  • दिल्ली स्पेषल पुलिस में एक्ट, 1946,
  •  भ्रष्टाचार निवारण कानून, 1947,
  • केन्द्रीय सतर्कता आयोग, 1964,
  •  भ्रष्टाचार जांच समितियां: कृपलानी समिति 1955, संथानम समिति 1964,
  • प्रषासनिक सुधार आयोग 1970।
सतर्कता संगठन के उद्देष्य

बुनियादी उद्देष्य तो भ्रष्टाचार समाप्त करना है। दूसरे  उद्देष्य हैं:
 सभी स्तरों पर कार्यकलापों में कार्यक्षमता के साथ-साथ मर्यादा बनाये रखने  और कर्तव्यनिष्ठा कायम करने   में प्रबंध की सहायता,
प्रबन्ध के लिए एक सेवा संगठन के रूपमें कार्य करना और गलत हिस्सों की  पहचान करने में मदद करना, न्यायपूर्ण, तटस्थ और तेजी से जांच करना,
कार्यविधियों में गुणात्मक सुधारों के सुझाव देना और सरकारी कोष के रिसाव को  रोकने में मदद करना,
निष्पक्ष रूप से और तुरन्त षिकायतों की जांच-पड़ताल करना और यह करने में सुनी हुई बातों, पक्षपात, दबाव या प्रलोभन से तनिक भी ढुलमुल न होना,
नियमित और अचानक जांच, धावे, निरीक्षण आदि अपने  आप और सी.बी.आई. के साथ संवेदनषील क्षेत्रों में करना जिससे गलत व्यवहारों, भ्रष्टाचार, अधिकारों के  दु रूप्योग और दूसरी अनियमितताओं के  मामले खोजे   जा सके ,
 गुप्त सूचनाएं प्राप्त करन े के माध्यमों का विकास करना ताकि भ्रष्टाचार, घूस, गलतव्यवहार, अधिकारों के  दु रूप्योग, दु राचरण आदि का पता चले और संदिग्ध व्यक्तियों की पहचान हो सके,
 प्रबंध को इस दिषा में जागरूक बनाना कि वह सतर्क ता को एक लगातार चलन ेवाला प्रबंध कार्य मानें और यह  जब चाहें, इस संगठन का आवष्यकतानुसार  कर सके ,
जो लोग ईमानदार, कार्यक्षमता से पूर्ण व कानून मानने वाले हैं, दुर्भावनापूर्ण षिकायतों से उनकी रक्षा करते हुए उनके  हाथ मजबूत करना और उन लोगाों कोसौम्यता से सुधारना जिनसे कोई वास्तविक चूक हो जाए।

सतर्कता विभाग के  प्रमुख कार्य
षिक्षात्मक: प्रषिक्षण कार्यक्रमों, सतर्क ता बुलेटिन आदि से,
निवारक (रोकथाम): नियमों, कार्यविधियों, पद्धतियों आदि में सुधार से,
जांचः गहरी छानबीन करके  अपराधी की पहचान करना और अन ुषासनात्मक कार्यवाही और दंड के माध्यम से सजा की कार्यवाही करना। अनुषासन की कार्यवाही तो कार्यकारी अधिकारी को ही करनी होती है।

केन्द्रीय सतर्कता आयोग:

इसकी स्थापना भारत सरकार ने  1964 में गृह मंत्रालय के  संकल्प सं. 24/7/64 ए.वीडी. दिनांक 11.2.64 के  माध्यम से की। संथानम समिति ने  जो भ्रष्टाचार निवारण के लिए बनाई गई इसके लिए सिफारिष की थी। अन्य संस्थाओं जैसे  उच्चतम न्यायालय, संघलोक सेवा आयोग, कंट्रोलर एवं आॅडिटर जनरल की भांति यह आयोग एक साविधिक संस्था नहीं बनाया गया। इस तरह की संस्थाओं की अधिकार सीमा और कार्यो  में संषोधन के लिए संसद का कानून बनता है। असाविधिक संस्था में सरकार ही एक आदेष से इनमें परिवर्त न कर देती है। आयोग स्थापित करने का मुख्य प्रयोजन यह था किदोष में सतर्क ता को मजबूत किया जाए। संकल्प की जो भावना है उसके अनुसार आयोग सरकार से स्वतत्र है।

आयोग की संरचना

यह एक व्यक्ति का आयोग था जिसके  प्रधान रहे केन्द्रीय सतर्क ता आयुक्त। इन्हे  राष्ट्रपति अपने  अधिपत्र से, मुहर सहित हस्ताक्षर करके नियुक्त करते  रहे। यह नियुक्ति तीन वर्ष के  लिए होती थी जिसे दो वर्ष तक और बढाया जा सकता था। अब इसमें परिवर्तन हुआ जिसे आगे दिया जा रहा है। इनकी सहायता के लिए यह रचना की गई थी। एक सचिव (भारत सरकार के पदेन संयुक्त सचिव), दो मुख्य तकनीकी इंजीनियर (मुख्य इंजीनियर स्तर के), 8 तकनीकी परीक्षक, 6 सहायक तकनीकी परीक्षक, 5 तकनीकी सहायक (जो आयोग को किसी तकनीकी मामले मे  सतर्क ता की दृष्टि से सलाह दे  सकें)।

अधिकार क्षेत्र

वे सभी मामले जिनमें केन्द्र सरकार की कार्य-पालक (एक्जीक्यूटिव) शक्तियों का प्रयोग होता है जैसे , केन्द्रीय सरकारी कर्मचारी, एन.डी.एम.सी., एम.सी.डी., पब्लिक संस्थान, राष्ट्रीयकृत बैंक, पोर्ट ट्रस्ट, बीमा कम्पनी, को-आॅपरे टिव और अन्य समितियां जो केन्द्र सरकार से अनुदान पाती हों, स्वायत्त और अन्य संस्थाएं।

कार्य

आयोग के  कार्य सलाहकार के  हैं जैसे संघ लोक सेवा आयोग के होते हैं। यद्यपि वे अनुषासन अधिकारी को बाध्य नहीं करते, किन्तु  ऐसा नहीं कि उन्हें हल्केपन से लिया जाए। यदि आयोग की सलाह के अनुसार कार्य न हो तो उसके कारण तुरन्त उसे सूचित करने पड़ते हैं। वे  सभी मसले जिनमें सलाह नहीं ली गई, सलाह स्वीकार नहीं की गई  या उसके अनुसार कार्य नहीं हुआ वार्षिक रिपोर्ट में शामिल किऐ जाते है। जो संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत की जाती है। दंड के मामलों में आयोग के अधिकार हैं। जांच शुरू करना, जांच करवाना, षिकायतों को सीधे अपने  नियंत्रण में लेना, सी.बी.आई. से कोई मामला रजिस्टर करके जांच करने को कहना, मंत्रालय आदि को कोई मामला सौंपकर जांच करके रिपोर्ट देने के लिए कहना आदि। षिकायतों के  विभिन्न मामलो  में ंआयोग से  परामर्ष करना होता है।

उच्चतम न्यायालय का निर्णय केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त का सी.बी.आई. आदि पर नियंत्रण18.12.97 के उच्चतम न्यायालय के  आदेष ने उच्च स्तरों पर भ्रष्टाचार की जांच करने  वाली संस्थाओ  को स्वायत्तता दी है। इसके पीछे जो सिद्धान्त हैं वे न्याय के  सामने बराबरी का बुनियादी सिद्धान्त है। ‘आप कितने भी ऊ चे हों, कानून आपके ऊपर है’।उच्चतम न्यायालय के आदेष के महत्वपूर्ण पहलू ये हैं:
केन्द्रीय सतर्क ता आयोग को साविधिक (स्टेटुटरी) संस्था का स्तर दिया जाए। वह सी.बी.आई. के कार्यो  के लिए सरकार उत्तरदायी रहेगी पर आयोग उसके कार्यो  पर नजर रखेगा। सी.बी.आई. मामले के बारे में आयोग को रिपोर्ट देगी।
केन्द्रीय सतर्क ता आयुक्त की नियुक्ति एक समिति करेगी जिसमें प्रधान मंत्री, गृहमंत्री और विपक्ष के नेता होंगे। वे केबिनेट सेक्रेटरी द्वारा प्रस्तुत  एक नामिका पर विचार करेंगे जिसमें उत्कृष्ट सिविल कर्मचारियों और अन्यों के नाम होंगे जिनकी कर्तव्यनिष्ठा अनिंद्य हो। समिति की सिफारिष पर राष्ट्रपति नियुक्ति करेगे।

कर्मचारी हित निधि

स्त्रोत

प्रतिवर्ष पिछले 31 मार्च को अखिल भारतीय स्तर पर अराजपत्रित कर्मचारियों की कुल संख्या के  आधार पर 30/- रु. प्रति रेल कर्मचारी के हिसाब से राजस्व द्वारा यह राशि कर्मचारी हित निधि कोष में स्थानान्तरित करने का प्रावधान है।
पिछले तीन वर्षके  दौरान अदत्त (अनपेड) भविष्य निधि एवं बोनस राशि को रद्द करके कर्मचारी हित निधि कोष में स्थानान्तरित कर देने का प्रावधान है।
पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान कर्मचारियों पर किए गए अखिल भारतीय स्तर पर  समस्त जुर्माने की राशि इस कोष में स्थानान्तरित करदे ने का प्रावधान है।
पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान अखिल भारतीय स्तर पर छात्रवृति के रूपमें प्रदान की गई राशि की 50 प्रतिशत राशि राजस्व द्वारा इस कोष में स्थानान्तरित कर देने का प्रावधान है।

सगठन

क्षेत्रीय स्तर पर -
  • क्षेत्रीय कार्यालय में कर्मचारी हित निधि समिति का संगठन निम्न प्रकार से होगा -
  • अध्यक्ष (चेयरमेन) - मुख्य कार्मिक अधिकारी
  • सचिव - वरिष्ठ कार्मिक अधिकारी (कल्याण)
  • प्रशासनिक सदस्य - उप महाप्रबन्धक, मुख्य चिकित्सा निदेशक, मुख्य
  • इंजीनियर, वित्तीय सलाहकार एवं मुख्य लेखा

अधिकारी

कर्मचारी यूनियन सदस्य - एन.एफ.आई.आर. - 6 सदस्य

ए.आई.आर.एफ. - 6 सदस्य

मण्डल/कारखाना स्तर पर -

मंडल/कारखाना स्तर पर कर्मचारी हित निधि समिति का संगठन निम्न प्रकार से होगा -

  • अध्यक्ष (चेयरमेन) - वरि.मंडल कार्मिक अधिकारी/मंडल कार्मिक
  • अधिकारी/वरि.कार्मिक अधिकारी
  • सचिव - मुख्य कल्याण निरीक्षक
  • कर्मचारी यूनियन सदस्य - एन.एफ.आई.आर - 2 सदस्य
  • ए.आई.आर.एफ. - 2 सदस्य
  • मुख्यालय पर त्रै मासिक बैठकें एवं मंडल/कारखाना स्तर पर द्वि-मासिक बैठकों  का आयोजन किया जाता है।
कर्म चारियो  को हित निधि राशि द्वारा दे य लाभ
अध्ययनरत बच्चों को काॅलेज स्तर पर इंजीनियरिंग, चिकित्सा, चार्ट र्ड अकाउन्टेंट आदि पाठ्यक्रमों के  लिए छात्रवृति प्रतिवर्ष प्रदान की जाती है। विज्ञान विषय के काॅलेज के  छात्रों को ग्रान्ट इन एड राशि प्रदान की जाती है। इसी प्रकार पाॅलीटेक्निक के विद्यार्थियों को भी शिक्षण सहायता राशि प्रतिदिन प्रदान करने काप्रावधान है।

खे लकू द एवं मनोरंजन हेतु -

रेल कर्मचारियों एवं उनके परिवार के सदस्यों के  खेलकूद एवं मनोरंजन सम्बन्धी सभी प्रकार की सहायता रेलवे इन्स्टीट्यूट, मनोरंजन क्लब एवं खेलकूद, संगीत, नाटक आदि प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाले कलाकारों को सहायता राशि प्रदान की जाती है।

बीमारी सहायता हेतु  -

लम्बी एवं गंभीर बीमारी से पीड़ित जैसे  - क्षय रोग, केंसर, कुष्ठ रोग आदि के कारणों से 600/- रु. प्रतिमाह के  हिसाब से निर्वाह भत्ता राशि प्रदान की जाती है।

इसी प्रकार से परिवार के सदस्यों के  लिए भी 200/- रु. प्रतिमाह के हिसाब से निर्वाह भत्ता राशि प्रदान की जाती है। इसी प्रकार से परिवार के सदस्यों के लिए भी 200/- रु. निर्वाह भत्ता राशि प्रदान करने  का प्रावधान है।

चश्मा अनु दान सहायता, दाँतों की बत्तीसी लगवाने के  लिए अनु दान सहायताइत्यादि भी प्रदान की जाती है।

अन्य आकस्मिक सहायता -

कर्मचारी अथवा उसके परिवार के  सदस्यों को आकस्मिक दुर्घटनाओं के  कारण हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति के  लिए तुरन्त सहायता कर्मचारी हित निधि कोष से प्रदान   करने का प्रावधान है।

सुनिश्चित कैरियर प्रगति (ए.सी.पी.) योजना

पांचवे वेतन आयोग की सिफारिशों  केआधार पर पदोन्नति की संभावनाओं को विकसित  करने  केलिए आर्थिक प्रोन्नति की यह योजना शुरू की गई है जिसमें 12 वर्षो  व 24 वर्षों की नियमित सेवा पूरी करने  के बाद कर्मचारियों की कठिनाइयों को कम करने  के लिए वित्तीय प्रोन्नति का लाभ प्रदान किया जाएगा। किसी भी कर्मचारी के  सम्पूर्ण सेवाकाल में  इस योजना के  तहत दो आर्थिक प्रोन्नति प्रदान किये जाएंगे बशर्तें प्रथम 12 वर्ष की सेवा के  उपरान्त कर्मचारी ने सामान्य रूपसे कोई पदोन्नति नहीं पाई हो। तथा द्वितीय प्रथम प्रोन्नति से नियमित सेवा पर 12 वर्ष बाद प्रदान किया जाएगा। 

इस योजना का लाभ निर्धारित सामान्य पदोन्नतिया सिद्धान्त जैसे - ट्रेड टेस्ट व अन्यपरीक्षाएं इत्यादि की पूर्ति के बाद ही प्रदान किया जाएगा। यह योजना भारतीय चिकित्सा सेवा, रेलवे से जुड़े हुए अधिकारी तथा रेलवे विद्यालयों के अध्यापकों पर लागू नहीं होगी । समूह ‘क’ वर्ग भी इस योजना के अन्तर्गत नहीं आएंगे लेकिन समूह ‘क’, ‘ख’ एवं ‘घ’ में आइसोलेटेड पद पर कार्यरत कर्मचारी योजना मेंआएंगे।

इस योजना के उद्देश्य हेतु  स्वस्थाने (इन सिटू ) पदोन्नति को भी पदोन्नति के रूपमें नहीं गिना जाएगा।

इस योजना के तहत लाभ उच्च वेतनमानों तक ही सीमित है लेकिन ये उच्चतर पदों के पद व कार्यों तथा उत्तरदायित्वों को प्रतिपादित नहीं करते हैं। अतः इस योजना  के तहत उच्चतर वेतनमान प्रदान करने का मुख्य मानदण्ड यह होना चाहिए कि क्या कर्मचारी 12/24 वर्षों की नियमित सेवा अवधि में एक ही वेतनमान में रहा है। इस योजना  के अन्तर्गत प्रोन्नति की दशा में किसी कर्मचारी का वेतन मूल नियम 22(क)(प)  के प्रावधानों में नियत किया जाएगा। इस योजना  के अन्तर्गत आर्थिक लाभ अन्तिम होंगे और नियमित पदोन्नति के समय कोई वेतन निर्धारण लाभ नहीं मिलेगा अर्थात कर्मचारी को ए.सी.पी.  के तहत आर्थिक प्रोन्नति पर नियमित पदोन्नति की तरह वेतन निर्धारण हेतु विकल्प देने की अनुमति होगी।

अनुशासनात्मक कार्यवाही  के कारण अथवा पदोन्नति से अस्वीकृति व्यक्त करने पर इस योजना के लाभों की स्वीकृति में विलम्ब  के सम्बन्ध में यह स्पष्ट किया जाता है कि सुनिश्चित कै रियर प्रगति योजना के मामले मे  वही पद्धति अपनाई जानी है जो नियमित पदोन्नति के लिए होती है।

इस योजना के  अंतर्गत मुख्य तथ्य निम्नलिखित है -

इस योजना में कर्मचारी को वैयक्तिक आधार पर उच्च वेतनमान में पदौन्नति देकर केवल वित्तीय लाभ दिये जाने की शंकल्पना की गई है अर्थात इस पर कर्मचारी को उच्च पद के कार्यभार, क्रियात्मक उत्तरदायित्वता, प्रास्थिति इत्यादि का निर्वाह नहीं करना होता है। अतः नये पद का स्रजन करने की अपेक्षा नहीं होती है।

उच्चतर वेतनमान में एक वित्तीय  उन्नोयन अधिकतम 14,300-18,000/- रूपये वेतनमान तक का प्रदान किया जा सकता है। इससे अधिक उच्चतर पद नियमानुसार रिक्ति पर आधारित पदौन्नति से ही भरे जाते है।

इसके तहत पहला वित्तीय लाभ 12 वर्ष की नियमित सेवा करने के  उपरांत और दूसरा पहले वित्तीय लाभ की तारीख से 12 वर्ष की नियमित सेवा के  उपरांत दे य होता है। यदि पहली प्रोन्नति के समय कर्मचारी के आयोग्य पाये जाने  के कारण अथवा विभागीय कार्यवाही इत्यादि के कारण स्थगित होता है तो उसका प्रभाव दूसरी प्रोन्नति पर भी पड़ेगा और वह भी तदनुसार  स्थगित हो जायेगा।

इस योजना के तहत दो वित्तीय प्रोन्नति के लाभ तभी अनु मेय होगें जब कर्मचारी ने 12 और 24 वर्ष की सेवा कोई नियमित पदौन्नति नहीं पाई हो। यदि एक नियमित पदौन्नति पहले मिल गई हो तो दूसरी प्रोन्नति का लाभ 24 वर्ष की नियमित सेवा के  उपरांत ही देय होता है।

इस योजना का लाभ लेने हेतु  पदौन्नति के  निर्धारित सामान्य मानक, अपेक्षित न्यूनतम मानक (बैंच मार्क ), व्यावसायिक परीक्षा, विभागीय परीक्षा, वरिष्ठता एवं पात्रता केवल ‘डी’ कर्मचारी हेतु ) इत्यादि पक्षों का पूरा किया जाना आवश्यक होता है।

इस योजना के  तहत उच्च वेतनमान में पदौन्नति पर पदनाम पुरान ही रहेगा तथा कर्तव्यो  का निर्वहन भी पुराने  पद के अनुसार रहता है।

इस योजना के तहत प्रदान किये गये उच्च वेतनमान का लाभ पास की पात्रता, रे लवे आवास का आवंटन, गृह निर्माण अग्रिम, यात्रा भत्ता , विभिन्न अग्रिम इत्यादि के  लिए गिना जाता है। लेकिन कर्मचारी को उच्च वेतनमान के फलस्वरूपप्रास्थिति प्राप्त नहीं होती है अर्थात समूह ‘घ’ के कर्मचारी को उच्च वेतनमान के तहत समूह ‘ख’ में नहीं लिया जाता है अथवा समूह ‘घ’ के कर्मचारियों को समूह ‘ग’ का दर्जा प्रदान किया जाता है।

इस योजना मे प्राप्त लाभ वेतनमान इत्यादि से कर्मचारी को वरिष्ठता का कोई लाभ नहीं मिलता है अर्थात कनिष्ठ को उच्च वेतनमान मिलने  की स्थिति में वरिष्ठ को  अप का लाभ नहीं दिया जाता है।

इस योजना में प्रोन्नति पर वेतन का निर्धारण नियमित पदौन्नति की तरह प्रदान किया जाता है अर्थात कर्मचारी को वेतन निर्धारण हेतु विकल्प प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाता है। इस योजना में प्रोन्नति पर न्यूनतम 100/- रूपये का लाभ दिये जाने का नियम भी लागू होता है तथा विशेष उल्लेख है कि कर्मचारी को उसी वेतनमान में नियमित पदौन्नति प्राप्त होने पर पुनः वेतन निर्धारण का लाभ प्रदान नहीं किया जाता है।

 इस योजना में आरक्षण / रोस्टर प्रणाली इत्यादि जैसे लाभ अलग से देय नहीं होते । आरक्षण / रोस्टर के  पात्र कर्मचारियों को भी सामान्य रूपसे ही प्रोन्नति का लाभ प्रदान किया जाता है।

यदि किसी कर्मचारी ने  कोई पदौन्नति प्राप्त करके अथवा बिना पदौन्नति के 24 वर्ष की नियमित सेवा एक वेतनमान में पूरी कर ली हो तो उसे द ूसरी प्रोन्नति का लाभ सीधे ही इस योजना के तहत प्रदान किये जाने का नियम है।
रेलवे बोर्ड ने  इस योजना में अन ेक स्पष्टीकरण अपने विभिन्न् निति पत्रों के माध्यम से जारी किये है। जिनका अध्ययन किया जाना समिचीन होगा। जैसे  आर.बी.ओ. नम्बर 87/2000, 24/2002, 41/2002, 91/2002, 178/2003, 69/2004 तथा 181/2004 इत्यादि उल्लेखित है।

उत्पादकता आधारित बोनस

  • उत्पादकता आधारित बोनस के भुगतान का उद्देष्य सेवा में बेहतरी लाने तथा कर्मचारियों को अधिक उत्पादन के द्वारा उच्चतर उत्पादकता प्राप्त करने के अभिप्राय से प्रेरित करना है।
  • प्रतिवर्ष राजस्व यातायात टनी किलोमीटरों के  आधार पर उत्पादकता आंकी जाएगी और यह आँकड़े माल एवं यात्रा के  लिए लेखा परीक्षा द्वारा सत्यापित सांख्यिकी विवरणी से लिए जाएंगे। इसके लिए वित्तीय वर्ष 1977-78 को आधार वर्ष माना गया है।

यह योजना निम्नलिखित कर्मचारियों पर लागू होती है -

  • रेलवे सुरक्षा बल के  सिवाय सभी रेलवे कर्मचारी। इनके लिए अलग से तदर्थ बोनस स्वीकृत होता है।
  • अस्थायी हैसियत प्राप्त आकस्मिक मजदूर एवं एवजी जिनकी सेवा अवधि निरन्तर 120 दिन से कम न हो।
  • परियोजना पर काम करने वाले वह दैनिक दर मजदूर जिनकी सेवा अवधि 180 दिन से कम न हो।
  • उत्पादकता आधारित बोनस सभी अराजपत्रित कर्मचारियों को ही देय होगा। इसके  लिए वेतन की सिलिंग 3000/- रूपये निर्धारित की गई है। जिन कर्मचारियों का वेतन 3000/- रूपये से अधिक हो उन्हें यह मानकर इसका भुगतान किया जाएगा जैसे  उनका वेतन 3000/- रूपये प्रतिमाह ही है।
  • उपर्यु क्त अभिप्राय से पारिश्रमिक में परिभाषित ‘वेतन’ तथा संषोधित वेतनमान में  स्वीकृत मंहगाई भत्ता शामिल होगा। रनिंग कर्मचारियों के  लिए ‘वेतन’ में वेतन का 30 प्रतिषत रनिंग भत्ते के रूपमें शामिल होगा। जो कर्मचारी चाहे अपना पूरा बोनस या उसका कोई भाग अपने प्रोविडेंट फंड खाते में जमा कर सकते  हैं। इसके लिए फंड के  नियमों में आवष्यक छूट दे  दी गई है।

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