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श्रमिको के हर्जाने का कानून 1923

श्रमिको के हर्जाने का कानून 1923



यह कानून कतिपय श्रेणी के  कर्मचारियों के दुर्घटनाग्रस्त होने पर व्यक्तिगत रूप से हुई क्षति की स्थिति में क्षतिपूर्ति नियोजक द्वारा देने के लिए बनाया गया है।

उद्देश्य 

इस कानून का उद्देश्य कुछ  श्रेणियो  के  मालिकों द्वारा अपने  श्रमिकों को दुर्घटना में चोट के लिए भुगतान की व्यवस्था करना है।
लागू होने की सीमाएं

यह कानून सभी श्रमिकों पर लागू होगा भले ही वे  4000 रुपये मासिक से अधिक वेतन पा रहे हों। किन्तु यह कानून उन रेलवे कर्मचारियों पर लागू नहीं होगा जो प्रशासनिक दफ्तरों, जिला या मंडल कार्यालयों में काम करते हों। इस प्रकार कारखाने मे  काम करने वाले किसी भी वेतन के  कर्मचारी को इस कानून की सुविधाएं मिल सकती हैं। इसमें आकस्मिक कर्मचारी (कैजुअल लेबर) और ठेकेदारों के  मजदूर भी शामिल होते हैं।

हर्जाने  की जिम्मेदारी

इस कानून के  अधीन हर्जाने  की जिम्मेदारी तब बनती है जब किसी श्रमिक को दुर्घटना से व्यक्तिगत चोट लगे और वह दुर्घटना उसके रोगजार के सिलसिले में और रोजगार के दौरान हुई हो।

रेल प्रशासन की हर्जाने  के  लिए कोई जिम्मेदारी नहीं होगी, यदि -

  • चोट से जो अशक्तता (डिसएबिलिटी) पैदा हो वह पूरी न हो और अगर आंशिक हो तो तीन दिन से कम की हो।
  • चोट का कारण सीधे तौर पर श्रमिक के शराब या नशीली दवा के असर से हो या श्रमिक के संरक्षा नियमों के उल्लंघन की वजह से हो या संरक्षा उपकरण हटाने या उसकी अवहेलना करने की वजह से हो। किन्तु  अगर इन परिस्थितियों में श्रमिक की मौत हो जाए तो हर्जाने की जिम्मेदारी बनी रहेगी।  दुर्घटना से हुई चोट की जिम्मेदार रेल प्रशासन की है या नहीं  इसे तय करने के लिए यह समझना और निर्णय करना जरूरी है कि वह रोजगार के सिलसिले में और उसके दौरान हुई थी या नहीं। कानून के अधीन ठेकेदार के श्रमिकों के लिए भी रेल प्रशासन की जिम्मेदारी होती है। भुगतान के बाद ठेकेदार से धन वसूल किया जा सकता है।
  • इस कानून के तहत निम्नलिखित चार प्रमुख अनुसूचियाँ विहित की गई हैं जिसके  आधार पर हर्जाने का निर्णय लेकर क्षतिपूर्ति प्रदान की जाती है -
अनुसूची 1 - इसमें उन चोटों का विवरण प्रदर्शित है जिनका परिणाम अशक्तता होता है। यह दो भाग में होती है।

अनुसूची 2 - इसमें श्रमिक की परिभाषा में आने वाले कर्मचारियों की सूची प्रदर्शित की गई है अर्थात इस कानून के तहत उन्हीं कर्मचारियों को क्षतिपूर्ति अनुमेय होती है जो इसमें श्रमिक के रूप में परिभाषित किए गए हों। रेलवे के लिए उदाहरण - कारखाने के तकनीकी कर्मचारी - ड्राइवर, गैंगमेन मरम्मत एवं रखरखाव के काम में लगे कर्मचारी, बिजली फीटिंग नवीनीकरण के काम में लगे कर्मचारी, टेलीफोन, तार इत्यादि में तकनीकी रूप से लगे कर्मचारी।

अनुसूची 3 - व्यवसायिक बीमारियों की सूची - इसमें प्रत्येक उद्योग में  संभावित बीमारियों का उल्लेख किया गया है अर्थात जो कर्मचारी विशिष्ट रूप से कार्यदशाओं के कारण यदि उल्लेखित बीमारी से पीड़ित हो जाता है तो उसे इस कानून के तहत क्षतिपूर्ति प्रदान की जाती है।

अनुसूची 4 - इसमें मृत्यु अथवा स्थायी अशक्तता पर दी जाने वाली हर्जाने  की रकम की गणना करने के लिए आयु वर्ग और फेक्टर का वर्णन किया गया है। जिसके आधार पर क्षतिपूर्ति राशि की गणना की जाती है।

अशक्तता के  प्रकार - इस कानून के तहत दुर्घटना होने पर सामान्यतः कर्मचारी को पहुँची व्यक्तिगत चोट को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया गया है -

  • चोट के कारण हुई अशक्तता स्थायी हो  सकती है या अस्थायी
  • वह पूर्ण हो सकती है या आंशिक 
पूर्ण अशक्तता वह होती है जो, भले ही वह स्थायी हो या अस्थायी, श्रमिक को दुर्घटना के समय जो सारे  काम वह कर सकता था, उन सभी के लिए अशक्त बना देती है (धारा 2 एल.) आंशिक अशक्तता उसकी कमाने  की शक्ति को कम कर देती है (धारा 2 जी.) कानून में अनुसूची 1 में दी गई है जिसके भाग 1 में वे चोटे हैं जो स्थायी पूर्ण अशक्तता पैदा करती है। भाग 2 में वे चोटें हैं, जो स्थायी आंशिक अशक्तता पैदा करती है।

मृत्यु पर हर्जाना 

कु ल वेतन का 50 प्रतिशत ग अनुसूची में दिया फैक्टर। न्यूनतम रकम 80000 रुपये।

स्थायी कुल अशक्तता पर हर्जाना 

कुल वेतन का 60 प्रतिशत ग अनुसूची में दिया फैक्टर। न्यूनतम रकम 90000 रुपये।

हर्जाने  का भुगतान 

कानून के  अनुसार हर्जाने का भुगतान कमिश्नर के जरिए ही किया जाता है। ये कमिश्नर बंगार और असम में न्यायालय होते हैं। और अन्य राज्यों में श्रम अधिकारी इनकी नियुक्ति कानून के  अनुसार की जाती है। भुगतान की रकम कितनी होगी, भुगतान किस प्रकार किया जायेगा और किसको कितनी रकम दी जाएगी आदि सवालों का निपटारा कमिश्नर ही करते हैं। रेलवे स्थापना नियमावली में इस बारे में हिदायतें दी गई हैं जिनका पालन करना चाहिए। कमिश्नर के निर्णय पर हाई कोर्ट को अपील होती है।

अन्य महत्वपूर्ण बातें

अस्पताली छुट्टी - रेलों पर दुर्घटना के बाद कर्मचारी को अस्पताली छुट्टी मिलती है। यह छुट्टी पूरे वेतन या आधे वेतन की हो सकती है। अगर कोई कर्मचारी चिकित्सा में सहयोग न दे  और उसकी सुधार की प्रगति पर असर पड़ने लगे तो आधे वेतन की छुट्टी दी जा सकती है। इस छुट्टी में मिलने  वाले वेतन में अर्द्ध मासिक भुगतान शामिल होता है। यह रकम कानून में देय अर्द्ध मासिक भुगतान से कहीं अधिक या दूनी होती है। हर्जाने की रकम मजदूरी भुगतान कानून के  अधीन मेहनताने में शामिल नहीं होती। अर्द्ध मासिक भुगतान या एक मुश्त भुगतान से भविष्य निधि की वसूली नहीं की जा सकती। अस्पताली छुट्टी के वेतन से यह वसूली कर सकते हैं।

कानूनी कार्यवाही

नोटिस बुक को निर्धारित नियमों के अनुसार रखना चाहिए। कमिश्नर को घटना के 7 दिनके अन्दर सूचना देना, उसके पास आवश्यक विवरण देना, हर्जाने की रकम एक महीने के अन्दर जमा कराना आदि जरूरी है। एक वार्षिक विवरण मुख्यालय में तैयार किया जाता है जिसे कमिश्नर के पास भेजना होता है। सभी रिपोर्टों की नकल भुगतान मुख्यालय (जनरल मैनेजर) के पास भेजना चाहिए।
  • चोट लगने पर सुपरवाइजर के कर्तव्य
  • चोट लगने पर तुरन्त प्राथमिक उपचार की व्यवस्था करना
  • डाॅक्टर को बुलाना,
  • सभी सम्बन्धित लोगों और लेखा अधिकारी को 48 घंटे के अन्दर सूचना देना,
  • जहां तक संभव हो दो गवाहों के बयान लिखवा लेना,
  • दुर्घटना की एक रिपोर्ट तैयार करना जिसमें उस जगह का एक डायग्राम दिया हो,
  • चोट की डाॅक्टरी रिपोर्ट प्राप्त करना,
  • पुलिस रिपोर्ट प्राप्त करना,
  • कर्मचारी ने पिछले 12 महीने में जो छुट्टी ली थी उसके विवरण नोट करना,
  • मजदूरी की गणना एकत्र करना,
  • दुर्घटना की जाँच के निष्कर्ष का पता लगाना।

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