अनुशासन एवं अपील नियम के अंतर्गत बिना जांच , दण्ड देने की प्रक्रिया
अनुशासन एवं अपील नियम के अंतर्गत, बिना जांच के दण्ड देने के लिए अनुशासन एवं अपील नियम की नियम 14 का पालन करते हुए निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई जाती है -
1. किसी कर्मचारी पर यह नियम तभी लागू होता है जब किसी कर्मचारी को किसी आपराधिक मामले में सक्षम न्यायालय व्दारा
(i) सजा सुना दी गयी हो और
(ii) वह अपराध जिसके लिए सजा सुनाई गयी हो, सम्बन्धित रेल सेवा नियमो के अंतर्गत कदाचार (मिस्कंडक्ट) की परिभाषा के अंतर्गत आता हो।
ऐसे स्थिति में कर्मचारी को अनुशासन एवं अपील नियम की नियम 14(i) के अन्तर्गत दण्डित किया जाएगा। नियम 14 (i) के अंतर्गत दण्डित करने से पहले आरोपित कर्मचारी को एक कारण बताओ नोटिस दिया जाना चाहिए तथा उसे अपना बचाव प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाना चाहिए जिस पर विचार करके ही दंडारोपण किया जा सकता है। दंडारोपण के विरुध्द कर्मचारी अपील अथवा रिविज़न का आवेदन प्रस्तुत कर सकता है।
नोट - कर्मचारी अपील अथवा रिविज़न का आवेदन मे, वह यह नही कह सकता है कि न्यायालय व्दारा उसे गलत ढंग से दण्डित किया गया है क्योकि इससे न्यायालय की मानहानि होगी, परन्तु वह यह अवश्य कह सकता कि उसे दी गयी सजा अपराध की तुलना में अधिक कठोर है।
2. यदि सक्षम प्राधिकारी के विचार में किन्ही उल्लेखनीय कारणों से नियमित जाँच प्रक्रिया युक्ति संगत तरीके से व्यावहारिक न हो तो अनुशासनिक प्राधिकारी नियम 14 (ii) का प्रयोग करते हुए किसी रेल सेवक को सेवामुक्त या बर्खास्त या अनिवार्यता: सेवानिवृत कर सकते है, परंतु इस प्रकार से दंडित कर्मचारी निर्धारित अवधि के अंदर तथा विहित प्रावधानों तहत अपीलीय अधिकार के सक्षम अपील की याचिका प्रस्तुत करता है तो उसे फोरी तौर पर न निपटाकर मामले एवं परिस्थितियों की पूरी जाँच की जानी चाहिये साथ ही कर्मचारी को पर्सनल हियरिंग की सुविधा दी जानी चाहिए।
यदि उस समय भी जांच करने के लिये उपयुक्त वातावरण न हो तो कारणों का उल्लेख करते हुये तथा उन परिस्थियों का विवरण देते हुये तब तक के लिये जाँच कार्यवाही स्थगित कर दी जानी चाहिये जब तक जाँच के लिये उपयुक्त वातावरण न हो जाये। परन्तु जाँच हर हालत में की जानी है अर्थात जाँच को हमेशा के लिये व्यावहारिक रूप से असंगत नही कहा जा सकता है।
इस कार्यवाही को नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी व्दारा ही किया जा सकता है अर्थात नियुक्तिकर्ता अधिकारी ही इस नियम के अंतर्गत सक्षम प्राधिकारी है। आदेश पर हस्ताक्षर अनुशासनिक प्राधिकारी का ही होना चाहिये। किसी अन्य के ‘आदेश से’, कृते’ और से नही (क्योकि नियुक्ति का अधिकार अपरदेय नॉट डेलीगेटेबुल) है
3. यदि राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल इस बात से संतुष्ट हो कि “राज्य की सुरक्षा के हित में” नियम 311 (2) के अंतर्गत जाँच संभव नही है तो जाँच प्रक्रिया निरस्त कर दी जायेगी तथा अनुशासन एवं अपील नियम के 14(iii) द्वारा अनुशासनिक प्राधिकारी पदमुक्त,पदच्युत या अनिवार्यता: सेवानिवृति में से कोई दंड दे सकेगा। राष्ट्रपति या राज्यपाल के इस अधिकारी को चुनौती नही दी जा सकेगी, परन्तु दण्डित कर्मचारी अपील अथवा पुनरीक्षण के समय विस्तृत जांच की मांग कर सकता है बशर्ते धारा 311(2) में वर्णित जांच के लिए अनुपयुक्त परिस्थिति उस समय भी विद्यामान न हो।
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