पुनरीक्षण (रिवीजन) कार्यवाही के सामान्य नियम
रिवीजन से तात्पर्य है कि जाँच या दंडारोपण
प्रक्रिया के अभिलेखों को दोहरा कर उनमे हुई त्रुटी, यदि कोई हो, में सुधार करना। इसी प्रकार यदि किसी जाँच प्रक्रिया के फलस्वरूप
दिये गये दण्ड के बाद
"कोई ऐसा नया तथ्य जो दण्ड का निर्णय लेने से पूर्व था ही नही अथवा
किन्ही कारणों से प्रस्तुत नही किया जा सका था, परन्तु जिससे समूचे
मामले तथा दण्ड की प्रकृति बदल सकती हो" जानकारी में आता है या दिया जाता है
तो सक्षम अधिकारी पूरे मामले को "फिर से देखकर या पुनरीक्षण करके" नया
आदेश पारित कर सकता है।
रिवीजन निम्न
प्राधिकारी कर सकते है -:-
i. राष्ट्रपति अथवा
ii. किसी क्षेत्रीय रेल का महाप्रबन्धक या उसके
समकक्ष या ऐसा प्राधिकारी जिसके मातहत आरोपित रेल सेवक कार्यरत हो, अथवा
iii. यदि अपील न की हो तो ऐसा अपीलीय अधिकारी जो
मण्डल रेल प्रबन्धक से कम स्तर का न हो, अथवा
iv. ऐसा कोई अन्य प्राधिकारी जो सहायक विभागाध्यक्ष
से कम स्तर का न हो जिसके मातहत आरोपित रेल सेवक कार्य करता हो,
नोट -अपनी
इच्छा से अथवा किसी अन्य आधार पर किसी अनुशासनिक जाँच प्रक्रिया से संबंधित
प्रलेखो को मंगाकर, इन नियमो के प्रावधानों के अंतर्गत पारित किसी
भी आदेश को संशोधित करते हुए नया आदेश पारित कर सकता है, परन्तु
ऐसा करते समय
जहाँ आवश्यक हो वहाँ संघीय लोक सेवा आयोग की परामर्श अवश्य लेनी होगी और यदि वह
ऐसा चाहे तो :-
अ. किसी आदेश को पुष्टित, संशोधन तथा निरस्त कर
सकता है
ब. संबंधित आदेश व्दारा दी गयी सजा की पुष्टि कर
सकता है, उसमे कमी कर सकता है, उसमे वृध्दि कर सकता है या उसे समाप्त कर सकता है या यदि कोई सजा न
दी गयी हो तो, सजा भी
दे सकता है अथवा
स. मामले को उस प्राधिकारी के पास, जिसने संबंधित आदेश पारित
किया हो अथवा उसके समकक्ष अन्य प्राधिकारी के पास मामले पर और आगे जाँच करने के
लिये वैसे निर्देशों के साथ भेज सकता है जैसा वह
द. ऐसा अन्य कोई आदेश पारित कर सकताहै जैसा वह
उपयुक्त समझे
रिवीजन के संबंध में निम्नलिखित
उपबन्ध भी बनाये गये है :-
अ. इस आदेशो के तहत किसी रेल सेवक को सजा देने
या सजा को बढाने संबंधी आदेश किसी भी रिवाइजिंग प्राधिकारी के व्दारा तब तक नही पारित किये जा सकेगे जब
तक आरोपित कर्मचारी को प्रस्तावित सजा के विरुध्द अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करने का
सुसंगत अवसर न प्रदान किया गया हो।
ब. यदि कोई ऐसी सजा देने का प्रस्ताव हो जो नियम
- 6 के क्लाज (v) से (ix) (दीर्घदण्ड) के अंतर्गत
आती हो या नियम - 6 के
क्लाज (iv) के
अंतर्गत आने वाली ऐसी सजा देने का प्रस्ताव हो जिसे देने से पूर्व हो या नियम 11(2) के तहत जाँच करनी
अनिवार्य हो अथवा रिवीजन के लिये प्रस्तुत आदेश व्दारा दी गयी सजा को बढ़ा कर इन
नियमो के अंतर्गत अन्य कोई सजा देने का प्रस्ताव हो तो,
नियम - 14 की परिस्थितियों के मौजूद न रहने पर, ऐसी कोई भी सजा तब तक नही दी जा सकती जब तक नियम - 9 के प्रावधानों के अंतर्गत पूरी जाँच न कर ली गयी हो बशर्ते ऐसी जांच पहले न की गई हो तथा आवश्यकतानुसार सघीय लोक सेवा आयोग की परामर्श न ली गयी हो।
2. रिवीजन की प्रक्रिया तब तक प्रारम्भ नही की जा
सकेगी जब तक
i. अपील के लिये निर्धारित समयावधि समाप्त न हो गयी हो अथवा
ii. यदि अपील की गयी हो तो उसका निबटारा न हो चुका
हो इसके अतिरिक्त प्रावधान
यह है कि इस नियम के प्रावधान रेलवे दुर्घटना से संबंधित मामलो में लागू नही होंगे
3.रिवीजन के प्रतिवेदन पर उसी प्रकार से विचार किया जायेगा जैसे अपील
के प्रतिवेदन पर विचार किया जाता है।
4. निम्नलिखित परिस्थितियों में रिवीजन की शक्ति का
प्रयोग नही किया जा सकेगा:-
i. यदि रिवाइजिंग प्राधिकारी उसी मामले से संबंधित
अपील पर एक बार विचार करके कोई आदेश पारित कर चुका हो
ii. यदि अपील की गयी हो तो उसे रिवाइजिंग प्राधिकारी
के व्दारा जो अपीलीय प्राधिकारी से वरिष्ठ न हो और यदि अपील न की गयी हो परन्तु
परन्तु रिवीजन के लिए निर्धारित समय सीमा समाप्त हो गयी हो।
नोट - उपरोक्त नियम (i) तथा (ii) राष्ट्रपति के व्दारा रिवीजन किये जाने की स्थिति में लागू नही होंगे
5. इन नियमो के अंतर्गत कोई भी कार्यवाही
निम्नलिखित प्राधिकारियों के व्दारा निम्नलिखित परिस्थितियों में आरम्भ नही की जा
सकेगी:-
अ. राष्ट्रपति को छोडकर किसी अन्य अपीलीय प्राधिकारी के व्दारा अथवा
ब. उपनियम (1) के मद संख्या (v) के अंतर्गत दिये गये किसी रिवाइजिंग प्राधिकारी
के व्दारा यदि सजा को उस प्रकार से बढ़ायी या संशोधित की जाने वाली हो अथवा कोई ऐसी
सजा दी जानी हो, जो कर्मचारी पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हो तो मूल आदेश के छ: महीनो
के बाद और यदि सजा को कम किया जाना हो तो मूल आदेश के एक वर्ष के बाद ।
नोट - रेलवे बोर्ड अथवा क्षेत्रीय रेल के
महाप्रबन्धक अथवा उनके समकक्ष रेलवे की किसी इकाई के अन्य प्राधिकार, यदि वे अपीलीय प्राधिकारी
से श्रेष्ठ हो तो , बिना
किसी समय सीमा के रिवीजन प्रतिवेदन पर विचार कर सकते है। राष्ट्रपति, यदि वे अपीलीय प्राधिकारी रह चुके हो तो भी रिवीजन प्रतिवेदन पर
बिना समय सीमा के विचार कर सकते है ।
स्पष्टीकरण :
इस नियम के अंतर्गत रिविजन प्रतिवेदन प्रस्तुत
करने की समय सीमा की गणना संशोधित आदेश जारी किये जाने की तिथि से की जायेगी। यदि
मूल आदेश को आपीलीय अधिकारी व्दारा यथावत रखा गया हो तो समय सीमा की गणना अपीलीय
आदेश जारी होने की तिथि से की जायेगी ।
नोट :- रिवीजन आवेदन प्रस्तुत करने
के लिए समय सीमा रिवीजन किये जाने वाले आदेश की कर्मचारी के व्दारा प्राप्ति के 45 दिनों अंदर निर्धारित की
गयी है। यदि अनुशासनिक प्राधिकारी के आदेश के विरुद्ध अपील न की गयी हो तो 45 दिनों की निर्धारित अवधि की गणना उस तिथि से की
जायेगी जिस दिन अपील के लिए निर्धारित समय सीमा समाप्त होती हो । परन्तु
यदि रिवीजन के आवेदक व्दारा प्रस्तुत विलम्ब के कारणों से प्राधिकारी संतुष्ट हो
तो 45 दिनों की निर्धारित समय
सीमा के बाद बही रिवीजन का प्रतिवेदन विचारार्थ स्वीकार कर सकते है।
रिवीजन संबंधी महत्वपूर्ण तथ्य :-
i. रिवीजन के लिए निर्धारित 45 दिनों की समय सीमा की गणना उस दिन से की जायेगी जिस दिन रिवीजन किया जाने वाला आदेश पारित किया गया था। यदि रिवीजन प्रतिवेदन किसी अपीलीय आदेश के विरुध्द हो तो यह अवधि अपीलीय आदेश जारी होने की तिथि से गिनी जायेगी ।
ii. महाप्रबन्धक से नीचे स्तर का कोई भी प्राधिकारी बिना समय सीमा के रिवीजन नही कर सकता है ।
iii. समय सीमा बढाने के उद्देश्य से पूर्व आदेश को रद्द करके तथा नया आदेश जारी करके भी निर्धारित समय सीमा नही बढाई जा सकती है।
iv. किसी मामले पर एक बार रिवीजन करने वाले प्राधिकारी
का उस मामले में अधिकार समाप्त हो जाता है तथा वह उस आदेश का पुन: रिवीजन नही कर
सकता है।
v. यदि रिवीजन की जाने वाली सजा एक से अधिक बार बढाई गयी हो तो रिवीजन की अवधि अंतिम बार बढाई गयी सजा की अवधि से जोड़ी जायेगी न कि मूल आदेश की तिथि थे ।
vi. रेलवे बोर्ड अथवा महाप्रबंधक को छोडकर अन्य कोई
प्राधिकारी बिना समय सीमा के किसी आदेश का रिवीजन नही कर सकता है। वे भी ऐसा तभी
कर सकेगे जब वे अपीलीय प्राधिकारी के ऊँचे स्तर के हो। यदि उपरोक्त दोनों
प्राधिकारी रह चुकने के बावजूद भी रिवाइजिंग प्राधिकारी रह सकते है।
vii. यदि रिवीजन आवेदन पर विचार किये जाने की अवधि
में ही, संबंधित रेल सेवक की मृत्यु हो जाती है तो भी उसके प्रतिवेदन पर गुण
दोष के आधार पर निर्णय लिया जायेगा ।
viii. नियम - 25 के अंतर्गत स्वयं के व्दारा पारित आदेश का रिवीजन करने का अधिकार राष्ट्रपति को छोडकर अन्य किसी रिवाइजिंग प्राधिकारी को नही है
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