मजदूरी भुगतान कानून 1936 असंगठित क्षेत्रों में मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराना तथा समय पर उनको मजदूरी वेतन इत्यादि का भुगतान करने के संकल्प के साथ इस अधिनियम को पारित कराया गया है ।
- इसका उद्देश्य उद्योगों में काम करने वाले कुछ श्रेणियों के कर्मचारियों की मजदूरी का भुगतान नियंत्रित करने के लिए यह कानून बनाया गया है। यह इन कर्मचारियों की उनके मालिकों द्वारा मजदूरी भुगतान के मामले में शोषण से रक्षा करता है। यह कानून सुनिश्चित करता है-
- समय पर मजदूरी का भुगतान कर दिया जाए,
- सही राशि का भुगतान किया जाए,
- मजदूरी में से केवल अधिकृत कटौतियाँ ही की जाए,
- मजदूरी के भुगतान की प्रक्रिया निर्धारित कर नोटिस बोर्ड पर
प्रदर्शित की जाए।
- मजदूरी भुगतान कानून उन सभी प्रतिष्ठानों पर लागू होता है, जिनमें 20 या इससे अधिक कर्मचारी काम करते हों। रेलों के सभी प्रतिष्ठानों और कारखानों पर यह कानून लागू होता है। किन्तु इसकी सीमा में वे कर्मचारी ही आते हैं जिनकी मजदूरी या वेतन पुराने संशोधित वेतनमान में 6500 रुपये प्रतिमाह से कम हो।
- मजदूरी भुगतान कानून की परिभाषा के अनुसार मजदूरी में मूल मजदूरी और सभी भत्ते शामिल हैं। परन्तु यात्रा भत्ता, मकान, रोशनी, पानी व डाक्टरी सुविधाओं से सम्बन्धित भुगतान और ग्रेच्युटी जैसे भुगतान शामिल नहीं होते। लाभ से प्राप्त बोनस भी शामिल नहीं होता किन्तु इन्सेंटिव बोनस या सेवा शर्तों में शामिल बोनस शामिल होता है।
- मजदूरी की अवधि एक मास के भीतर कुछ भी हो सकती है, जैसे, दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक। परन्तु मजदूरी की अवधि निश्चित करके उसका नोटिस लगाना जरूरी होता है।
- मजदूरी भुगतान की समय सीमा रेलवे में कारखानों के मामलों में अगर 1000 व्यक्ति काम करते हों तो 7 दिन के भीतर और यदि 1000 व्यक्ति से अधिक हों तो 10 दिन के भीतर।
- इस कानून के अनुसार कर्मचारियों को प्रतिमाह मजदूरी का भुगतान करने के लिए निम्नलिखित बैच बनाकर सुनिश्चित किया गया है -
प्रशासनिक बैच - मुख्यालय एवं मंडल कार्यालय के स्टाफ को इसके अनुसार माह के अन्तिम दिन भुगतान किया जाता है।
ट्राफिक बैच - समस्त यातायात वर्ग के कर्मचारियों को प्रतिमाह 7 एवं 8 तारीख को भुगतान करने की व्यवस्था की जाती है।
यांत्रिक बैच - रनिंग एवं तकनीकी लाइन कर्मचारियों को 13 एवं 14 तारीख को भुगतान की व्यवस्था की जाती है।
इंजीनियरिंग बैच - समस्त इंजीनियरिंग विभाग के लाइन कर्मचारियों को प्रतिमाह 21 एवं 22 तारीख को भुगतान की व्यवस्था की जाती है।
- इस कानून के अनुसार भुगतान के अन्य प्रावधान के अनुसार सारे भुगतान चालू करन्सी में होने चाहिए, वस्तुओ में नहीं।
- भुगतान नकद में होना चाहिए। कर्मचारियों की सहमति से वे चैक द्वारा भी किया जा सकता है।
- कार्य दिवस के दिन ही भुगतान किया जाना चाहिए एवं कार्यालय समय में ही भुगतान की व्यवस्था की जानी चाहिए।
- यदि किसी की सेवा समाप्त हो गई हो तो 48 घंटे के भीतर उसका भुगतान हो जाना चाहिए।
- भुगतान विटनेस
इस कानून के धारा 3 के अनुसार किसी अधिकारी को भुगतान विटनेस के लिए नामित किया जाता है जो सारे भुगतानों के लिए जिम्मेदार होता है। नामित करने वाला अधिकारी भी जिम्मेदार होता है।
- इस कानून के अनुसार धारा 7 के अनुसार ही मजदूरी से कटौतियां की जा सकती है। ये कटोतियां इस प्रकार हैं-
- जुर्माना
- काम से अनुपस्थिति
- रेल सम्पत्ति को क्षति या
उसके खोने पर जो कर्मचारी की
लापरवाही या भूल से हुई हो
- कचहरी के आदेश पर जब्ती
- ऋण या अग्रिम के लिए
- आयकर
- मकान का किराया
- सहकारी समिति की रकमें
- भविष्य निधि में जमा की जाने वाली राशि
- बीमा प्रीमियम
- रेल द्वारा दी गई सुविधाओं के लिए कटौती जैसे - इंस्टीट्यूट, रेलवे स्कूल या चन्दा या फीस
- जाली सिक्के आदि स्वीकार करने पर स्टेशन डेबिट
- अस्पताल का खर्च या फीस बिजली, पानी या सफाई के लिए कटौती इसके आलवा कर्मचारी द्वारा लिखित में सहमति
देने पर जैसे - प्रधानमंत्री राहत कोष, भूकम्प, बाढ़ पीड़ितों की सहायतार्थ एक दिन के वेतन की कटौती।
- इस कानून में अन्य प्रावधान निम्नलिखित हैं
1. जुर्माने - जुर्माने किये जा सकते हैं और उनकी वसूली भी की जा
सकती है। इसकी मुख्य शर्तें इस प्रकार हैं -
- वे काम या भूलें जिन पर जुर्माना लागू होगा, नोटिस बोर्ड पर स्थानीय भाषा में लगाना जरूरी है।
- . औपचारिक जांच जरूरी नहीं है, किन्तु उत्तर देने का अवसर देना जरूरी है।
- . वेतन का 30 प्रतिशत तक एक बार में और गलत काम या भूल की तारीख के 60 दिन के भीतर वसूली जरूरी है।
- . जुर्माने का रजिस्टर रखना जरूरी है।
- . जुर्मानों को स्टाफ बेनिफिट फण्ड में जमा करवाया जाता है।
6. NOTE - ये जुर्माने अनुशासन नियमों के अनु सार दंड नहीं है और आदेशों की अवहेलना, देरी या अनियमित हाजिरी, अनुचित या अशिष्ट व्यवहार, नियमों के पालन न करने पर, रेल सम्पत्ति को क्षति पहुंचाने पर और अन्य कारणों से किए जा सकते हैं।
- इस कानून के अनुसार कटौतियों की सीमा सामान्यतः 50 प्रतिशत तक कटौती हो सकती है। यदि सहकारी समिति की कटौती शामिल हो तो वह 75 प्रतिशत तक हो सकती है।
- कर्मचारी की सहमति से यूनियन का चनदा, वेलफेयर फण्ड के लिए चन्दा काटे जा सकते हैं। इसके आलवा सुविधाओं के लिए कटौती किया जा सकता है । जिन कटौतियों के बारे में कानून में प्रावधान नहीं है जैसे - स्कूल बस, केन्टिन, कर्मचारियों की अपनी हित योजना आदि के लिए उनकी लिखित सहमति और चीफ लेबर कमिश्नर की स्वीकृति से ही कटौती की जा सकती है।
- काम से अनुपस्थिति
इस कानून के अनुसार 10 या अधिक कर्मचारी मिलकर या एक योजना के अनुसार काम न करे , उन्होंने कोई नोटिस नहीं दिया हो और पर्याप्त कारण न हो तो काम न करने पर (भले ही शारीरिक उपस्थिति हो) अनुपस्थिति की अवधि के अनुपात
में वेतन से कटौती की जा सकती है। इसमें 8 गुना धन तक दण्ड में वसूल किया जा सकता है। उदाहरण के लिए - एक दिन के लिए 1+ 8 यानि 9 दिन, दो दिन के लिए 2+8 = 10 दिन का वेतन काटा जा सकता
है। इसके लिए नियमों का पालन करना जरूरी है, जिसमें 1 माह पहले नियमों को
नोटिस बोर्ड पर लगाना शामिल है।
- रजिस्टर और वार्षिक विवरण - इस कानून के नियमों के अनुसार वेतन रजिस्टर, जुर्माने का रजिस्टर, सम्पत्ति की क्षति या खोने पर वसूली का रजिस्टर, अग्रिम का रजिस्टर रखने जरूरी हैं।
- इस कानून के मुख्य नियम अंग्रेजी, हिन्दी और स्थानीय भाषा में नोटिस बोर्ड पर लगाना चाहिए। मजदूरी का भुगतान किस अवधि के लिए होता है और किस तारीख को किया जाता है, यह भी नोटिस बोर्ड पर पेंट से लिखवाया हुआ होना चाहिए।
- यदि मजदूरी के भुगतान में देरी हो, गलत कटौतियां कर ली गई हों तो नियमों के उल्लंघन के लिए जुर्माने किया जा सकता है। यह जुर्माना 3750 रुपये तक हो सकता है। जिस कर्मचारी का नुकसान हुआ हो उसे हर्जाना भी मिल सकता है जो गलत कटौती के दस गुने तक हो सकता है। अन्य मामला में जैसे नोटिस आदि न लगाने पर, जुर्मा ना रजिस्टर का रख-रखाव न रखने आदि पर 1500 रुपये का जुर्माना हो सकता है एवं इस रूपये 7500 तक बढ़ाया जा सकता है।
- इस सबंध
में सरकार किसी प्राधिकारी की नियुक्ति भी करती है जो नियमों के उल्लंघन की शिकायतें सुनकर उन
पर निर्णय करेगा और दंड भी देगा।
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