अभियोजन(Prosecution Cases) के मामलों में
अपनाई जाने वाली कार्यविधि (Procedure)
1. भ्रष्टाचार निवारक अधिनियम की धारा 19 अथवा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 (1) के अंतर्गत सक्षम प्राधिकारी द्वारा आपराधिक कदाचार के कृत्यों के लिए विधि न्यायालय के समक्ष लोक सेवक के विरूद्ध अभियोग चलाने से पहले स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक होता है। इस प्रयोजन के लिए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो रेल मंत्रालय से ऐसे अपराधों के लिए आरोपित रेल सेवक के विरूद्ध मुकदमा चलाने हेतु मंजूरी प्रदान करने का अनुरोध करता है। साथ ही मामले का पूर्ण विवरण भेजता है ताकि सक्षम प्राधिकारी कदाचार की गंभीरता को समझ सके और स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सके। अभियोजन चलाने की मंजूरी देने वाला सक्षम प्राधिकारी वह है जो कार्यवाहियों के चलते समय रेल सेवक को सेवा से निष्कासित करने के लिए सक्षम हो।
2. ऐसे मामलों में जिनमें कोई राजपत्रित अधिकारी संलिप्त हों जो राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त हो अर्थात समूह क अधिकारी हो तो केंद्रीय सतर्कता आयोग की सलाह लेना अनिवार्य है और समूह ख अधिकारी/अराजपत्रित कर्मचारियों के संलिप्त होने के मिश्रित मामलों में भी केंद्रीय सतर्कता आयोग की सलाह प्राप्त करना आवश्यक है। तथापि यदि समूह ख अधिकारी और/ या अराजपत्रित कर्मचारी से संबंधित मामलों में जब तक स्वीकृति प्रदान करने हेतु रेल मंत्रालय द्वारा केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो की सिफारिशों से भिन्न प्रस्ताव नहीं किया जाता तब तक केंद्रीय सतर्कता आयोग की सलाह की आवश्यकता नहीं होगी।
3. समूह क के अधिकारियों के मामले में रेल मंत्रालय को अभियोग चलाने की मजूरी के संबंध में एक माह के भीतर केंद्रीय सतर्कता आयोग को अपनी टिप्पणियां प्रस्तुत करनी होगी। इसको ध्यान में रखते हुए क्षेत्रीय रेलों को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो से अनुरोध प्राप्त होने के 15 दिन के भीतर रेलवे बोर्ड को अपनी टिप्पणियां प्रस्तुत करनी होगी। अभियोग की स्वीकृति अथवा अन्य जानकारी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो की रिपोर्ट प्राप्त होने के दो महीने के भीतर देनी होगी।
4. समूह ख अधिकारी और अराजपत्रित पदधारियों के मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो की रिपोर्ट प्राप्त होने के एक माह के भीतर अभियोजन के लिए मंजूरी देनी चाहिए। यदि सक्षम प्राधिकारी अभियोजन के लिए मंजूरी प्रदान करने हेतु केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो से सहमत हो तो केंद्रीय सतर्कता आयोग के साथ विचार-विमर्श करने की कोई आवश्यकता नहीं है। तथापि, यदि सक्षम प्राधिकारी मजूरी प्रदान करने हेतु कोई प्रस्ताव नहीं रखता है तो केंद्रीय सतर्कता आयोग के साथ विचार-विमर्श करना आवश्यक है। इन मामलों में रेलवे बोर्ड द्वारा टिप्पणियां एक माह के भीतर केंद्रीय सतर्कता आयोग को भेजी जानी चाहिए जिसके लिए क्षेत्रीय रेलों को अपनी टिप्पणियां 15 दिन के भीतर रेलवे बोर्ड को भिजवाई जाएं।
5. केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो का यह विचार हो कि अभियोग चलाया जाना चाहिए और यदि किसी कानून के अंतर्गत ऐसा अभियोग चलाने की स्वीकृति राष्ट्रपति के नाम से जारी की जानी अपेक्षित हो तो केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो अपनी अन्वेषण रिपोर्ट की प्रतियां केंद्रीय सतर्कता आयोग और रेलवे बोर्ड को प्रेषित करेगा। बोर्ड द्वारा इस रिपोर्ट के प्राप्त होने के एक माह के भीतर इस पर अपनी टिप्पणी केंद्रीय सतर्कता आयोग को भेजनी चाहिए। बोर्ड द्वारा भेजी गई टिप्पणियों पर विचार करने के बाद केंद्रीय सतर्कता आयोग मामले का समग्र परीक्षण करेगा। इसके पश्चात वह बोर्ड को सूचित करेगा कि अभियोजन के लिए स्वीकृति की आवश्यकता है या नहीं। बोर्ड द्वारा केंद्रीय सतर्कता आयोग की सिफारिश पर विचार करके अन्य कार्रवाई की स्वीकृति के बारे में निर्णय लिया जाएगा। यदि बोर्ड अभियोग चलाने की स्वीकृति देने का निश्चय करता है तो इस संबंध में वह सकारण आदेश जारी करेगा जिसका अभिन्यास (लेआउट) मानकीकृत कर दिया गया है और दिनांक 17.12.2003 के पत्र संख्या 99/वी/ 1/वीपी/1/2 के अनुसार रेल मंत्रालयों के सभी स्कंधों (विंग) को सूचित कर दिया गया है। इस खंड के अनुबंध II/1 में इसका ब्यौरा दिया गया है। यदि बोर्ड अभियोग की स्वीकृति के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग की सलाह को स्वीकार नहीं करता है तब यह मामला संबंधित बोर्ड सदस्य के अनुमोदन सहित पुनर्विचार हेतु केंद्रीय सतर्कता आयोग के पास भेजा जाएगा। केंद्रीय सतर्कता आयोग असहमति के समाधान के लिए त्रिपक्षीय बैठक बुला सकता है। इसके पश्चात, केंद्रीय सतर्कता आयोग पुनः विचार करके अपनी सलाह देगा। यदि फिर भी बोर्ड केंद्रीय सतर्कता आयोग की सलाह पर असहमति दर्शाता है तो वह मामला कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के पास भेजा जाएगा। मामला अंतिम निर्णय के लिए कार्मिक विभाग के प्रभारी मंत्री के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।
6. सेवा निवृत्त लोक सेवक द्वारा सेवा में रहते हुए किए गए अपराधों के संबंध में अभियोजन हेतु स्वीकृति आवश्यक नहीं है।
7. ऐसे मामलों में जिनमें कई सह-अभियुक्त हों और इनमें से कुछ पर अभियोजन चलाने के लिए राष्ट्रपति के नाम से स्वीकृति जारी करने की आवश्यकता हो तथा अन्य के लिए अन्य प्राधिकारियों की स्वीकृति की आवश्यकता है, तो ऐसे मामलों में सभी अभियुक्त अधिकारियों के बारे में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो अपनी अंतिम रिपोर्ट केंद्रीय सतर्कता आयोग को भेजेगा और साथ ही साथ रिपोर्ट की प्रतियां संबंधित मंत्रालय/विभाग को पृष्ठांकित करेगा। अमियोग के लिए राष्ट्रपति की स्वीकृति के मामले में पहले बताई गई कार्यविधि अपनाई जाएगी। अन्य अधिकारियों के बारे में केंद्रीय सतर्कता आयोग उन पर अभियोजन चलाने के लिए स्वीकृति देने हेतु संबंधित सक्षम प्राधिकारियों को सूचित करे। ऐसे मामलों में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो द्वारा अलग-अलग आरोप पत्र दाखिल नहीं किए जाएंगे। सभी संबंधित अधिकारियों पर अभियोजन चलाने की स्वीकृति प्राप्त होने के बाद केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो द्वारा सभी संलिप्त अधिकारियों के विरूद्ध उचित क्षेत्राधिकार के अनुसार न्यायालय (न्यायालयों) में सभी आरोप पत्र एक साथ दायर किए जाएंगे।
8. ऐसे मामले जहां पर स्वीकृति प्राधिकारी महाप्रबंधक या उनके
अधीनस्थ अधिकारी हों तो रिपोर्ट प्राप्ति के 15 दिन के भीतर सभी संगत दस्तावेजों, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो की रिपोर्ट पर टिप्पणियों (यदि
सहमत हों तो उसके कारणों सहित) के साथ मामला रेलवे बोर्ड को अग्रेषित किया जाना
चाहिए।
9. समूह 'क' अधिकारियों के अभियोजन की स्वीकृति हेतु रेल मंत्री सक्षम
हैं,
जबकि समूह 'ख' अधिकारियों
के लिए संबंधित बोर्ड सदस्य सक्षम हैं।
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