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अनुशासनिक जाँच प्रक्रिया - रिव्यू


 "रिव्यू " का हिंदी में शाब्दिक अर्थ है "फिर से देखना" अर्थात किसी अनुशासनिक जाँच प्रक्रिया में किये गये आदेशो को फिर से देखना तथा आवश्यकता अनुसार उन पर आदेश पारित करना.


यदि किसी विभागीय अनुशासनिक प्रक्रिया की समाप्ति के पश्चात ऐसा कोई नया तथ्य जानकारी में आता है अथवा दिया जाता है जो नियमित जाँच प्रक्रिया के दौरान संबंधित आदेश पारित करते समय उपलब्ध नही था या किन्ही कारणों से प्रस्तुत नही किया जा सका था परन्तु जिससे मामले की  मूल प्रकृति ही बदल जाती हो तो राष्ट्रपति  स्वेच्छा से अथवा अन्य किसी आधार पर किसी आदेश का  पुनर्विलोकन (रिव्यू) कर सकते है 

इस संबंध में उपबंध यह है कि इन नियम के अंतर्गत राष्ट्रपति के व्दारा कोई भी दण्ड तब तक नही दिया जा सकता है जब तक संबंधित रेल सेवक को प्रस्तावित सजा के विरुध्द प्रतिवेदन देने का अवसर न प्रदान किया गया हो अथवा नियमो के अनुसार दीर्घ दण्ड दिये जाने वाले आदेश के तहत दिये गये लघु दण्ड को बढाकर दीर्घ दण्ड दिये जाने की संभावना होने पे नियम - 9 के अंतर्गत, नियम - 14 की परिस्थितियां न होने पर , विस्तृत अनुशासनिक जाँच न कर ली गयी हो अथवा आवश्यक हो वहाँ संघीय लोक सेवा आयोग की परामर्श न ली गयी हो. 

रिवीजन को यदि दूसरी अपील कहा जाये तो अनुपयुक्त नही होगा क्योकि अपीलीय आदेश के बाद रिवीजन प्रतिवेदन पर उसी प्रकार से विचार किया जाना है जैसे अपील के प्रतिवेदन पर 

रिवीजन के प्रतिवेदन के निष्पादन के ; लिये निम्नलिखित समय सीमा निर्धारित की गयी है :- 

 1.   यदि अपील के स्तर  पर दी गयी सजा को बढ़ाना हो तो छ : महीने , और 

  2. यदि सजा को कर्मचारी के पक्ष में घटना हो तो एक वर्ष 

परन्तु राष्ट्रपति , रेलवे बोर्ड तथा महाप्रबंधक बिना किसी समय सीमा के रिवीजन प्रतिवेदन पर विचार करके आदेश पारित कर सकते है .


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